प्रयोग बनाम संयोग, चुनाव चला पाकिस्तान…
प्रयोग बनाम संयोग, चुनाव चला पाकिस्तान…
यकीन जानिए! राजनीति का ककहरा बहुत कठिन है इसे पढ़ने के लिए के लिए देश में कहीं पर कोई विद्यालय नहीं है जहाँ आप टेढ़ी-मेढ़ी, ऊबड़-खाबड़ विचित्र सियासत का ककहरा पढ़ पाएं। इसे पढ़ने के लिए आपको अंतरयामी होना पड़ेगा। क्योंकि देश में जब-जब चुनाव आता है तो एक अजब नमूना जनता के सामने परोस दिया जाता है जिसे देखकर जनता भौचक्का रह जाती है। जनता यह समझ नहीं पाती कि यह आखिर हुआ क्या…? इस प्रकार के मुद्दे की जरूरत आखिर चुनाव में क्यों आ जाती है। लेकिन जनता कुछ भी समझे नेता जी जो समझते हैं वह तो बात निराली है। नेता जी अपने मुँह से जो कुछ बोल देते हैं वह ही बहस का मुद्दा बन जाता है। लेकिन क्या करिएगा यह चुनावी मौसम है।
मजे की बात तो यह है कि जनता करे तो क्या करे। बेचारी जनता सीधी-साधी एवं भोली भाली है। जनता को कुछ पता ही नहीं है। अगर कुछ पता भी है तो उसकी सुनने वाली कोई नहीं है। जनता करे तो क्या करे। जाए तो जाए कहाँ अजब बिकट समस्या है। देश में कहीं भी जब चुनावी मौसम आता है तो जमीनी मुद्दे तो उड़न छू हो जाते हैं। जिन मुद्दों से जनता का सरोकार है वह मुद्दे सभी छू मंतर हो जाते हैं और एक नया मुद्दा आकाश से धरती पर सीधे-सीधे विराजमान हो जाता है। वह ऐसा मुद्दा जिसका जनता से किसी भी प्रकार का सरोकार नहीं होता। क्योंकि वह मुद्दा न तो जनता को रोजी दे सकता है न ही रोजगार, न ही इस प्रकार के मुद्दे जनता को दवाई दे सकते हैं न ही उपचार, इस प्रकार के आकाशवाणी मुद्दे जनता को क्या दे सकते हैं…? कभी कुछ नहीं। क्या इस प्रकार के मुद्दे देश की जनता की जरूरत हैं…? क्या इस प्रकार के मुद्दे जनता को रोजगार देने में सहयोग देंगे कदापि नहीं। क्या इन मुद्दों से दो जून की रोटी मिल जाएगी…? कदापि नहीं। लेकिन क्या करिएगा। कुछ नहीं। बस शांति से बैठ जाइए और टकटकी लगाए निहारते रहिए। क्योंकि इससे अधिक आप कुछ कर भी नहीं सकते। क्योंकि आप तो बस में भरी हुई सवारी हो चलें हैं। आपका भाग्य उस ड्राइवर के हाथों में है जोकि उस बस को चला रहा जिसमें आप सवार हैं। अगर ड्राइवर आपको सही सलामत आपके गनतब्य स्थान तक पहुँचा दे तो आपका भाग्य। अन्यथा ईश्वर न करे अगर ड्राइवर ने यह कह दिया कि उसे नींद आ गई थी तो फिर अंजाम क्या होगा यह आप खुद ही सोच लीजिए। बस आप समझ गए होंगे। ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है आज देश कि सियासत का यही रूप-रंग एवं ढ़ंग हो चला है। यह राजनेता नहीं आपके भाग्य विधाता हैं। इनको राजनेता मानना छोड़ दीजिए अपुति इनको अपना भाग्य विधाता मान लीजिए। क्योंकि आपके भाग्य का फैसला यही करते हैं। इनके द्वारा लिए गए फैसलों को आपके भाग्य पर बखूबी मढ़ दिया जाता है। उसके ऊपर एक पर्दा भी बड़ी सफाई से चढ़ा दिया जाता है जिसे आप देख ही नहीं सकते। कल्पना करें कि कितनी अजीब स्थिति हो चली है। समस्या आपको है। बीमारी आपको है। लेकिन आप अपनी बीमारी का उपचार नहीं खोज सकते। आप अपनी बीमारी के अनुसार दवाएं नहीं ले सकते। आप अपनी समस्या का निराकरण नहीं कर सकते। क्योंकि फैसला लेने वाला कोई दूसरा व्यक्ति बैठा है। कितनी अजीब स्थिति है। यह ऐसी स्थिति है कि कल्पना करते ही आपके पैरों के तले से जमीन खिसक जाएगी लेकिन आप क्या कर सकते हैं सिवाए इसके कि आप टकटकटी लगाए निहारते रहें।
चुनाव में हार जीत किसी की हो। सरकार किसी भी पार्टी की बने। परन्तु मुद्दे वह होने चाहिए जिससे देश का विकास हो, देश की जनता के भाग्य में परिवर्तन हो, देश की जनता का भला हो, देश की जनता का उत्थान हो, देश की जनता का कल्याण हो, दो जून की रोटी की व्यवस्था हो, चिकित्सा के क्षेत्र में उचित प्रबन्ध हो। जनता के मूलभूत मुद्दों पर चुनाव होना चाहिए। क्या यह सही नहीं कि चुनावी मुद्दों का रिपोर्ट कार्ड बनना चाहिए। क्या यह सही नहीं कि समस्याओं को आधार बनाना चाहिए। क्या यह सही नहीं कि प्रत्येक चुनाव के बाद जब पुनः चुनाव आए तो सरकार के द्वारा किए गए कार्यों की खुले मंच से जनता के सामने समीक्षा होनी चाहिए…? ऐसा करना देश हित एवं जनहित के जीवन में अकल्पनीय परिवर्तन लाएगा। परन्तु ऐसा कौन करेगा…? वर्तमान समय के राजनेताओं के द्वारा ऐसा किया जाए इसकी कल्पना करना अपने आपमें बेईमानी होगी। क्योंकि कोई भी राजनेता ऐसा नहीं है जोकि ननकू एवं रज्जाक के मुद्दों को चुनावी आधार देता हो अथवा देने की कोशिश करता हो। देश के सियासतदानों के द्वारा किस क्षेत्र में जाने एवं ले जाने का प्रयास किया जा रहा है वह विचित्र है।
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उत्तर प्रदेश के चुनाव में पाकिस्तान को घसीट लाया गया। उत्तर प्रदेश के चुनाव में पाकिस्तान का क्या काम था…? क्या पाकिस्तान रोटी दे देगा…? कदापि नहीं पाकिस्तान तो खुद ही भिखमंगा है। भुखमरी के कागार पर है। क्या पाकिस्तान शिक्षा दे देगा…? कदापि नहीं पाकिस्तान तो जाहिलों का भण्डार है वह क्या दे सकता है। सच यह है कि पाकिस्तान भारत के सामने कहीं नहीं टिकता। भारत कोई अफगानिस्तान थोड़ी है। भारत महान मजबूत सशक्त समृद्ध राष्ट्र है। भारत को अमेरिका और रूस को सामने रखकर अपनी तुलना करनी चाहिए और आगे बढ़ने के लिए हर एक जरूरी कदम उठाना चाहिए। भारत को शिक्षा के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में, रोजगार के क्षेत्र में मजबूत कदम उठाना चाहिए, जिससे की हमारा राष्ट्र तेजी के साथ विश्व स्तर पर और प्रबल एवं विशाल रूप धारण कर सके।
अब बताइए सपा प्रमुख अखिलेश यादव पाकिस्तान को देश का दुश्मन नंबर एक नहीं मानते। अजब बात है। ऐसा क्य़ों नहीं मानते। यह बड़ा सवाल है। क्या चुनावी मौसम में नहीं मानते या सदैव नहीं मानते यह और बड़ा सवाल है…? यूपी चुनाव के मैदान में सियासी दलों की ओर से अब तक जिस प्रकार के मुद्दों को गढ़ा जा रहा है वह बहुत ही रोचक है। ध्यान दीजिए अखिलेश यादव ने चुनावी अभियान के शुरुआती दिनों में मोहम्मद अली जिन्ना को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के समकक्ष खड़ा कर दिया था। इसके बाद फिर क्या था दूसरी ओर से अब्बाजान वाला बयान सामने आ गया।
निश्चित ही अखिलेश यादव का यह बयान एक बड़े राजनीतिक तूफान को न्यौता है। निश्चित ही यह चुनावी मौसम है और यह मुद्दा भी बहुत बड़ा है। और इस मुद्दे को क्यों न बड़ा बनाया जाए…? वास्तव में यह देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मुद्दा है। यह बहुत ही बड़ा मुद्दा है। यह तो साफ है कि अब हर बड़े नेता इसका जिक्र करते दिखेंगे। क्या देश का कोई भी नागरिक इस बात सहमत होगा…? कदापि नहीं। चुनाव आते जाते रहेंगे लेकिन देश है तो हम हैं। देश सर्व प्रथम है। जम्मू कश्मीर में होने वाले आतंकी हमलों और आतंकवादी गतिविधियों को कैसे कोई भूल सकता है।
यदि राजनीति की बात की जाए तो इस मुद्दे से सपा को सीधा-सीधा नुकसान होना तय है। क्यंकि देश की सीमाओं पर तैनात सैनिक उत्तर प्रदेश के लगभग हर गांव से जाता है। इसके अलावा अर्द्धसैनिक बलों में भी बड़ी संख्या में सुरक्षा कर्मी के रूप में यहां के युवा तैनात हैं। आतंकी हमलों में प्रदेश ने कई वीर जवानों को खोया है। निश्चित है कि इस मुद्दे से एक गलत संदेश जाएगा जिसका परिणाम चुनाव में मतों के आधार पर क्षति पहुँचाएगा। प्रमुख पार्टी भाजपा अब अखिलेश यादव के पाकिस्तान को दुश्मन नंबर एक नहीं मानने के मामले को राष्ट्रवाद से भी जोड़कर पेश करने की दिशा में निश्चित है कि जाएगी। अखिलेश यादव को पहले ही शीर्ष नेता जिन्नावादी करार दे चुके हैं। अर्थात यह मुद्दा वर्तमान चुनाव में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। अब देखना यह कि जनता क्या इस मुद्दे को चुनावी आधार बनाती है अथवा नहीं। क्योंकि राजनेताओं की तो बात ही निराली है। लेकिन जनता का क्या पैमाना होता है यह देखने का विषय है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक है)
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