नेपाल के घटनाक्रम से सबक ले भारत…

नेपाल के घटनाक्रम से सबक ले भारत…

-योगेंद्र योगी-

इतिहास गवाह है कि लंबे समय तक बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे कारणों से शोषण झेल रही जनता जब बगावत पर उतर आती है तो वह अच्छे और बुरे का फर्क भूल जाती है। ऐसे हालात ही क्रांति को जन्म देते हैं। ऐसा ही नेपाल में हुआ जहां सत्ताधारी नेता देश को भूल कर खुद का घर भरने में लग गए। देश के युवाओं का सब्र का बांध उस वक्त टूट गया जब नेपाली सरकार ने उनकी अभिव्यक्ति की आजादी छीनने का प्रयास करके जले पर नमक छिडक़ने का काम किया। नेपाल में जो घटनाक्रम हुआ, उससे भारत के नेता भी सबक ले सकते हैं। देश की मूल समस्याओं के समाधान के बजाय गुमराह करने वाले मुद्दों पर राजनीति का नतीजा नेपाल विद्रोह है। समस्याएं जब सिर से गुजरने लगे तब ऐसे हालात पैदा होते हैं। नेपाल में नेताओं के बच्चों के ऐशो-आराम और आम परिवारों की बेबसी के बीच का भेदभाव विरोध का मुख्य कारण रहा। सोशल मीडिया पर प्तनेपो किड, प्तनेपो बेबी और प्तपॉलिटिशियन नेपो बेबी नेपाल जैसे ट्रेंड युवाओं के गुस्से को दर्शाते हैं। नेताओं के बच्चे महंगी गाडिय़ां और आलीशान सामान इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं आम युवा बेरोजगारी और प्रवासी मजदूरी की कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। नेपाल की बदहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ओडिशा सरकार ने ओडिशा स्पेशल अरमेंड पुलिस में भर्ती निकाली।

इस सरकारी नौकरी के लिए 3000 से ज्यादा नेपाली छात्र झारसुगुड़ा पहुंचे हैं। हैरानी की बात यह है कि वेकेंसी सिर्फ 135 हैं। इससे नेपाल के युवाओं के हालात को आसानी से समझा जा सकता है। नेपाल के प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के खिलाफ इस गुस्से की वजह तो समझ आती है, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार पर हमले हैरान करने वाले रहे। इसका जवाब नेपाल में बरसों से हुए घोटालों की गर्त में छिपा है। वर्ष 1991 में नेपाली कांग्रेस सरकार ने मिस्र की कंपनी से 1.8 करोड़ डॉलर में एक वीआईपी हेलिकॉप्टर खरीदा। जांच में पता चला कि ये हेलिकॉप्टर पुराना और खराब हालत में था। इसकी असल कीमत भी 40 लाख डॉलर थी। जांच में पता चला कि इस डील के बाकी बचे 1.4 करोड़ डॉलर का कमीशन तत्कालीन प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला के रिश्तेदारों को मिला। ये घोटाला इतना बड़ा था कि कोइराला सरकार गिर गई और नेपाल में जमकर हंगामा बरपा। जांच के लिए कमेटी बनी, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद न जाने कितने ही बड़े घोटाले हुए, जिन्होंने नेपाल को दीमक की तरह खा लिया। वर्ष 1999 में नेपाल की रॉयल नेपाल एयरलाइंस ने ऑस्ट्रिया से एक बोइंग 767 विमान लीज पर लिया था। तकरीबन 4.5 करोड़ डॉलर की लागत से छह साल के लिए सौदा हुआ। लेकिन बाद में खुलासा हुआ कि ये डील पूरी तरह से घपले से भरी थी। इस पर हंगामा इतना बरपा कि जनता सडक़ों पर उतर आई और संसद में जमकर बवाल हुआ। वर्ष 2008 में नेपाल पुलिस को अफ्रीकी देश सूडान में मिशन के लिए तीन करोड़ डॉलर में बख्तरबंद गाडिय़ां और अन्य उपकरण खरीदे। ये गाडिय़ां इतनी खराब थीं कि सूडान में मिशन ने इन्हें इस्तेमाल करने से मना कर दिया।

इस डील में नेपाल पुलिस के कई बड़े अधिकारी और मंत्री शामिल थे। नेपाल की सियासत में गहरे तक पैठ कर चुके भ्रष्टाचार ने देश में उद्योग-धंधों को चौपट करना शुरू कर दिया। निवेशकों ने दूरी बनानी शुरू कर दी। इसका सीधा असर रोजगार पर भी पड़ा। बड़ी संख्या में युवाओं ने काम की तलाश में भारत से लेकर मलेशिया और खाड़ी देशों का रुख करना शुरू किया। इससे युवाओं में धीरे-धीरे सियासत के प्रति नफरत पनपने लगी। देश में राजशाही के पतन से लेकर, माओवादी आंदोलन और लोकतंत्र का पायदान चढऩे तक देश में सत्ता का स्वरूप तो लगातार बदलता रहा, लेकिन इस सत्ता को वही चेहरे हथियाते रहे। वही पुराने नेता, उनकी पार्टियां और उनके परिवार। नेपाल में भ्रष्टाचार इस कदर फैला है कि करप्शन के इंडेक्स में 180 देशों में वह 107वें पायदान पर है। स्थिति ये बन गई है कि हर साल बड़ी संख्या में नेपाल के युवा देश छोड़ देते हैं। युवाओं का ये कोई साधारण पलायन नहीं है बल्कि आर्थिक असमानता, लगातार सीमित हो रहे अवसर और प्रशासनिक नाकामियों का भार है, जिसे देश में ही छोडक़र लोग पलायन हो रहे हैं। बीते तीन दशक में लगभग 68 लाख नेपाली नागरिक विदेशों में काम कर रहे हैं। इनमें से 15 से 17 लाख नेपाली तो भारत में रहकर रोजी-रोटी कमा रहे हैं। एक लाख नेपाली स्टूडेंट हर साल पढ़ाई के लिए विदेश का रुख कर लेते हैं। नेपाल में बेरोजगारी का ग्राफ बताता है कि साल 2017-2018 की तुलना में यह 11.4 फीसदी से बढक़र साल 2022-2023 में 12.6 फीसदी हो गई है। नेपाल में आर्थिक विकास धीमा है। पिछले साल नेपाल के नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस की एक रिपोर्ट नेपाल लिविंग स्टैंडर्ड सर्वे के मुताबिक नेपाल में युवाओं के लिए नौकरी ढूंढना एक बड़ी चुनौती है।

नेपाल में खेती करने वालों की संख्या में भी गिरावट आई है। सर्वे के अनुसार खेती में नौकरी करने वालों की संख्या 70.7 प्रतिशत से घटकर 1.9 प्रतिशत हो गई है। गैर कृषि क्षेत्रों में नौकरी करने वालों की संख्या 9.5 प्रतिशत से बढक़र 56.6 प्रतिशत हो गई है। इसका मतलब है कि लोग अब खेती छोडक़र दूसरे कामों में ज्यादा जा रहे हैं। युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं मिल रहे हैं। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से लोग परेशान हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगने से युवाओं में गुस्सा था। इन सभी कारणों से युवा सडक़ों पर उतर आए। नेपाल के लोग विशेष रूप से युवा भाई-भतीजावाद से भी त्रस्त हैं। नेपाल की सियासत वंशवाद में जकड़ी हुई है। नेपाली कांग्रेस से लेकर कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल), माओवादी लगभग सभी पार्टियों में नेपो किड्स की भरमार है।

संसद और प्रांतीय असेंबली में पूर्व प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों और बड़े नेताओं के बच्चे और रिश्तेदारों की भरमार है। सरकारी नौकरियों से लेकर नौकरशाही और प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्राथमिकता से नेपो किड्स हैं। सरकारी ठेके भी अक्सर नेताओं के रिश्तेदारों और उनके दोस्तों को मिल जाते हैं। सोशल मीडिया पर नेपोटिज्म के खिलाफ जमकर हैशटैग ट्रेंड होने लगे तो इस बीच सरकार ने कई सोशल मीडिया अकाउंट्स पर बैन लगा दिया। इसके लिए जरूरी रजिस्ट्रेशन नहीं होने का हवाला दिया गया। ओली सरकार का यही फैसला उनके लिए नासूर साबित हुआ। साल 2015 में हुए सर्वेक्षण में भ्रष्टाचार में 168 देशों में नेपाल 130वें स्थान पर था, जो अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भी आगे था। अब नेपाल को दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद चौथा सबसे भ्रष्ट देश माना जाता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के नेपाल चैप्टर के एक अधिकारी ने नेपाल की इस रैंकिंग के लिए राज्य के अधिकारियों, सरकार, संसद, न्यायपालिका और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा निजी लाभ के लिए किए जा रहे दुरुपयोग को रोकने में उसकी असमर्थता को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि भारत के हालात नेपाल जितने खराब नहीं हैं, किन्तु सत्ताधारी और विपक्ष के नेताओं को एहतियात के तौर पर नेपाल से सबक लेना चाहिए।

(स्वतंत्र लेखक)

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

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