दुनिया में भारत की बढ़ती अहमियत…
दुनिया में भारत की बढ़ती अहमियत…
-डा. जयंतीलाल भंडारी-
यकीनन दुनिया में भारत की आर्थिक अहमियत बढऩे के एक के बाद एक नए-नए परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहे हैं। पिछले माह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 से 21 नवंबर तक ब्राजील, नाइजीरिया और गुयाना के पांच दिवसीय दौरे के दौरान जहां जी-20 शिखर सम्मेलन में भुखमरी और गरीबी के खिलाफ एकजुटता विषय पर प्रभावी संबोधन दिया, वहीं नाइजीरिया और गुयाना पहुंचकर इन देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की सार्थक वार्ताएं की। यह भी महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा जी-20 शिखर सम्मेलन से इतर ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, ब्राजील, सिंगापुर, इंडोनेशिया, पुर्तगाल, नॉर्वे और स्पेन समेत कई देशों के नेताओं के साथ की गई 31 द्विपक्षीय और अनौचारिक वार्ताओं में भारत का रणनीतिक महत्व उभरकर दिखाई दिया है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी भारत के वैश्विक व्यापार और निर्यात बढ़ाने के मद्देनजर विदेश दौरों में द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं की रणनीति लगातार आगे बढ़ा रहे हैं। खास तौर से पिछले छह महीनों में इस रणनीति से द्विपक्षीय व्यापार के अच्छे अध्याय दिखाई दिए हैं। गत 13 से 15 जून को इटली में विकसित देशों के संगठन जी-7 के शिखर सम्मेलन में विशेष आमंत्रित देश के रूप में भारत की अहमियत दिखाई दी है। इस मौके पर सम्मेलन में शामिल प्रमुख देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ भारत की द्विपक्षीय वार्ताएं लाभप्रद रही हैं।
रत के लिए सबसे ठोस लाभ जी-7 की उस प्रतिबद्धता से उपजा, जिसमें कहा गया कि भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) को बढ़ावा दिया जाएगा। इस गलियारे के निर्माण की घोषणा गत वर्ष 2023 में भारत में जी-20 शिखर बैठक के समय की गई थी। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि गत 9 जुलाई को 22वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में मास्को में भारत और रूस के बीच बहुआयामी संबंधों की संपूर्ण श्रृंखला की समीक्षा के बाद भारत और रूस ने द्विपक्षीय कारोबार को 2030 तक 100 अरब डॉलर तक बढ़ाने, व्यापार में संतुलन लाने, गैर-शुल्क व्यापार बाधाओं को दूर करने और यूरेशियन आर्थिक संघ (ईएईयू)-भारत मुक्त व्यापार क्षेत्र की संभावनाएं तलाशने का लक्ष्य रखा है। दोनों देशों ने राष्ट्रीय मुद्रा का इस्तेमाल कर एक द्विपक्षीय निपटान प्रणाली स्थापित करने और पारस्परिक निपटान प्रक्रिया में डिजिटल वित्तीय उपकरणों को लाने की योजना बनाने की बात कही है। यह बात महत्वपूर्ण है कि मोदी ने जहां 21 सितंबर को अमेरिका में आयोजित क्वाड लीडर्स सम्मेलन में भाग लेकर इस संगठन की भारत के लिए उपयोगिता बढ़ाई, वहीं 22 सितंबर को न्यूयार्क में मोदी और जो बाइडेन के बीच हुई बातचीत में कोलकाता में एक सेमीकंडक्टर प्लांट स्थापित करने का करार हुआ है। इसी प्रकार 10 अक्टूबर को लाओस के वियनतियाने में आयोजित आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में आसियान देशों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक के बाद जो बयान जारी किया है, उसके मुताबिक ये देश इस समूचे क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रमकता से असहज और परेशान हैं तथा भारत के साथ आर्थिक, कारोबारी व सुरक्षा संबंधों का नया दौर आगे बढ़ाएंगे। उल्लेखनीय है कि रूस के कजान में 22 से 24 अक्टूबर तक आयोजित ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का भारत ने रणनीतिक लाभ लिया। भारत और चीन के बीच पांच साल बाद अहम द्विपक्षीय वार्ता हुई। मोदी ने इस वार्ता के बाद कहा कि भारत और चीन के बीच संबंध महत्वपूर्ण हैं। नि:संदेह दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा और भारत का रणनीतिक महत्व लगातार बढ़ रहा है। 22 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने जर्मनी के स्टटगार्ट में आयोजित ‘न्यूज-9 ग्लोबल समिट’ को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये संबोधित करते हुए कहा कि पूरी दुनिया भारत के रणनीतिक महत्व को स्वीकार कर रही है और यह पिछले 10 वर्षों में अपनाए गए ‘सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन’ मंत्र के कारण संभव हुआ है। 21वीं सदी में तीव्र विकास के लिए भारत में प्रगतिशील और स्थिर नीति-निर्माण की व्यवस्था लाई गई, लालफीताशाही हटाई गई एवं जीएसटी (माल एवं सेवा कर) के रूप में एक कुशल कर प्रणाली शुरू की गई है। भारत ने बैंकों को मजबूत किया, ताकि विकास के लिए समय पर पूंजी उपलब्ध हो सके।
मोदी ने कहा कि देश के तेज विकास के लिए भौतिक, सामाजिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाया गया है। वस्तुत: जर्मनी का ‘फोकस ऑन इंडिया’ दस्तावेज इसका एक उदाहरण है। यह दस्तावेज दिखाता है कि दुनिया भारत के रणनीतिक महत्व को कैसे स्वीकार कर रही है। उन्होंने कहा कि भारत-जर्मनी रणनीतिक साझेदारी ने इस वर्ष 25 वर्ष पूरे कर लिए हैं। जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्ज हाल ही में अपनी तीसरी भारत यात्रा पर आए थे, जो दोनों देशों के प्रगाढ़ संबंधों को दर्शाता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अब भारत को आर्थिक दुनिया की नई शक्ति के रूप में देखा जा रहा है। जहां अमेरिका और रूस भारत को एक जैसा महत्व दे रहे हैं, वहीं सभी महत्वपूर्ण वैश्विक मंचों पर भारत को विशेष अहमियत मिल रही है। जहां डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद भारत से मित्रता बढ़ाने की बात कही है, वहीं 10 नवंबर को रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भारत के बढ़ते आर्थिक कद को स्वीकार करते हुए भारत को वैश्विक महाशक्ति कहा और भारत से मैत्रीपूर्ण संबंधों की जमकर तरफदारी की है। निश्चित रूप से ट्रंप का राष्ट्रपति बनना भारत के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद है। आगामी जनवरी 2025 में ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से ऊर्जा की कीमतों पर लगाम लगेगी और ऐसे में भारत की जीडीपी में तेज वृद्धि होगी। माना जा रहा है कि राष्ट्रपति की कुर्सी संभालने के बाद ट्रंप चीन पर 60 फीसदी तक टैरिफ शुल्क बढ़ा सकते हैं। ट्रंप प्रशासन के तहत चीन के साथ व्यापार युद्ध (ट्रेड वार) के तेज होने के आसार हैं। चूंकि अमेरिका के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी करीब 14 फीसदी है, ऐसे में अमेरिका में चीन से आयात में कमी आने से अमेरिका के बाजार में भारत से निर्यात बढ़ाने का बड़ा मौका मिलेगा।
यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन प्लस वन रणनीति के तहत भारत के वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश के रूप में आगे बढऩे के मौके होंगे। यद्यपि दुनिया में भारत का रणनीतिक-आर्थिक महत्व बढ़ रहा है, लेकिन इसे ऊंचाई देने के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा। भारत को लॉजिस्टिक लागत घटानी होगी। मेक इन इंडिया को अधिक कारगर बनाना होगा। शोध एवं नवाचार पर व्यय बढ़ाना होगा। कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाना होगी। ई-कॉमर्स निर्यात हब को तेजी से क्रियाशील करना होगा। वाणिज्य मंत्रालय के थिंक टैंक का उपयोग मौजूदा मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) वार्ताओं की मदद के लिए विशेष सेल बनाने में किया जाना होगा। इन सबके साथ-साथ एफटीए को आसान बनाया जाना होगा। इस परिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय एफटीए पर वार्ताओं और मानक परिचालन प्रक्रियाओं (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर यानी एसओपी) को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ एक हुई बैठक के बाद अब नए दिशा-निर्देशों पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की शीघ्र मंजूरी जरूरी है। हम उम्मीद करें कि इस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के बढ़ते हुए आर्थिक-रणनीतिक महत्व का लाभ जहां द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने में मिलेगा, वहीं भारत दुनिया के नए वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश के रूप में भी रेखांकित होते हुए दिखाई दे सकेगा। भारत का भविष्य उज्ज्वल लगता है।
(लेखक विख्यात अर्थशास्त्री है)
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