थाईलैंड में एक तरह का राम राज्य है…
थाईलैंड में एक तरह का राम राज्य है…
थाईलैंड में एक तरह से राम राज्य है वहां के राजा को भगवान श्रीराम का वंशज माना जाता है लेकिन भगवान राम के नाम को लेकर वहां कोई धार्मिक विद्वेष अथवा असहिष्णुता नहीं है। भारतीय संस्कृतिक धार्मिक विरासत से जुडे़ थाईलैंड में राजा को भगवान का प्रहरी माना जाता है तथा बौद्ध मतावलंबी आबादी वाले इस देश में न केवल बौद्ध मठों बल्कि हिन्दू मंदिरों तथा गिरिजाघरों में भी भगवान की प्रतिमाओं तथा चित्रों के दोनों तरफ सैनिक वेशभूषा में काशी नरेश की भगवान के प्रहरी के रूप में चित्र तथा मूर्तियां लगी रहती हैं।
थाईलैंड आने वाले सैनानियों को यह बात अवश्य ही आश्चर्यचकित करती है कि वहां स्त्रियों तथा पुरुषों के लिए अभिवादन करने के शब्द अलग−अलग हैं। नरेश ऊदयादेव को नौवें राम की पदवी दी गई है। थाईलैंड में संवैधानिक लोकतंत्र की स्थापना 1932 में हुई। भगवान राम के वंशजों की यह स्थिति है कि उन्हें निजी अथवा सार्वजनिक तौर पर कभी भी विवाद या आलोचना के घेरे में नहीं लाया जा सकता है वे पूजनीय हैं।
थाई शाही परिवार के सदस्यों के सम्मुख थाई जनता उनके सम्मानार्थ सीधे खड़ी नहीं हो सकती है बल्कि उन्हें झुक कर खडे़ होना पड़ता है। 75 वर्षीय काशी नरेश आधुनिक थाईलैंड के निर्माता माने जाते हैं। वैज्ञानिक चित्रकार तथा अंग्रेजी संगीत के मर्मज्ञ थाई नरेश थाईलैंड की राजनैतिक व्यवस्था में स्थायित्व के प्रतीक हैं। राजकुमार महाकाशी रांगलोंजकोर्स उनके उत्तराधिकारी हैं। उनकी तीन पुत्रियों में से एक हिन्दू धर्म की मर्मज्ञ मानी जाती हैं।
लगभग 6 करोड़ 20 लाख की आबादी वाले थाईलैंड की 94 प्रतिशत आबादी बौद्ध मतावलंबी है, चार प्रतिशत आबादी मुसलमानों, ईसाइयों, हिन्दुओं तथा अन्य मतावलंबियों की है। थाईलैंड के बौद्ध मठों में विशेषतौर पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा के दोनों तरफ थाई नरेश की सैन्य वस्त्रों में रक्षक के रूप में मूर्तियां देखकर सैलानी कौतूहल से भर उठते हैं।
चिआंग माशी में भगवान बुद्ध की प्रतिमा के दोनों तरफ ऐसी ही थाई नरेश की सैन्य वस्त्रों में सुसज्जित प्रहरी के रूप में खड़ी प्रतिमाएं हैं। इस मठ की एक विशेषता भारत से लाए गए पांच बौद्ध वृक्षों में से एक विशाल बोधि वृक्ष है यह बोधि वृक्ष भारत से लाकर खासतौर पर थाईलैंड के तीन प्रांतों में रोपा गया है।
इस मठ में बड़ी तादाद में भारतीय श्रद्धालु खासतौर पर इस बोधि वृक्ष को देखने आते हैं। थाई संस्कृति की एक अन्य विशेषता स्त्रियों तथा पुरुषों के अभिवादन का अलग−अलग तरीका है। थाई महिला अगर आपका स्वागत करती है तो वह हाथ जोड़ कर स्वाकी रक्षा कहेगी लेकिन पुरुष स्वाकी कास कहेंगे।