डाॅक्टर बिटिया ;…
डाॅक्टर बिटिया ;…
-डॉ. नीना कनौजिया-
बड़ी मुश्किल से दिन का काम खत्म करके वह बिस्तर पर लेटी थी। लेटते ही घड़ी पर नजर पड़ गई कुसुम की, तीन बजकर पन्द्रह मिनट।
मन में सोचने लगी। क्या लेटना, क्या बैठना, अभी सासू मां की आवाज आने लगेगी।
उसने पास ही रखी किताब उठा ली, थोड़ा खोला तो वही, उसका फेवरेट सबजेक्ट, खो गई, वह ख्यालों में।
क्लास में कितनी स्मार्ट थी वह, पढऩे का कितना शौक था उसे, हमेशा कोशिश करती पहले पांच में आये, फस्र्ट, सेकेंड और आती भी थी।
पापा भी कितने खुश रहते, हमेशा सबसे कहते रहते-मेरी बिटिया बड़ी होकर बनेगी डॉक्टर।
तभी सासू मां की आवाज आई थी-बहू साढ़े तीन बज गये हैं, बहुत देर से चाय पीने का मन कर रहा था, एक कप चाय ही बना दो। ३कितनी बार कहा है ज्यादा आराम मत किया कर, कामकाज किया करो, शरीर खुला-खुला रहता है। डिलीवरी आसानी से हो जायेगी, वरना तो फिर वही चीर-फाड़। आजकल की लड़कियां तो जब देखो तब आराम, हम तो सारे दिन काम करते और वैसे ही अस्पताल चले जाते।
कुसुम रोज की इन बातों को अनसुना करके बिना कुछ बोले धीरे-धीरे से उठने की कोशिश करने लगी।
तभी पेट के अंदर गर्भ में शिशु ने करवट ली, कुसुम ने धीरे से पेट पर हाथ फेरा, शिशु को भी वैसे कुसुम के दर्द का अहसास हुआ था।
अरे बहू, नीरज को फोन कर देना, दफ्तर से लौटते समय दूध लेता आयेगा। ये गाय भी तो गाभिन है, नौ महीने चारा डालो, तब जाकर कहीं दूध मिले। एक की लकड़ी नब्बे खर्च, इससे अच्छा बाजार से मोल ले ले, वही अच्छा। बड़बड़ाई जा रही थी सासू मां।
चाय का पानी उबल रहा था, पानी में दूध और चायपत्ती डालते ही कुसुम वहीं खड़ी-खड़ी पुरानी यादों में चली गई थी।
आज और कल में कितना अंतर हो गया है, वही चार दीवारें यहां भी, वही कंक्रीट, सीमेंट सरिये से बनी छत यहां भी, वहां भी है। माता-पिता वहां भी थे, मां बाबूजी यहां भी हैं, फिर क्यूं इतना अंतर आ जाता है सोच में।
नया रिश्ता है तो वो हैं पति, जिनके लिए सारी दुनिया छोड़कर आ गई है वो।
आने दो आज, आज उनसे अपनी मन की सारी, बहुत सारी बातें करूंगी। आज साथ जाकर आइसक्रीम खायेंगे, बाहर जाकर आइसक्रीम खाने का तो एक बहाना है, कम से कम थोड़ी खुली हवा में सांस ले सके पति की बाहों में स्वछन्द।
वो काम करती जा रही थी और घड़ी की तरफ देखती जा रही थी, जैसे उसके बार-बार घड़ी देखने से जल्दी बज जायेगा छह और खत्म हो जायेगा इंतजार।
आखिर छह बज गये, दरवाजे की घंटी बजी, उसने सोचा भागकर दरवाजा खोले और नीरज से लिपटकर दिनभर के थकान व अकेलेपन को मिटा डाले। परंतु तब तक दरवाजा खुल गया था और नीरज के हाथ में पानी का गिलास भी थमा दिया था मां ने।
कैसा रहा तेरा दिन, बहुत थक गया होगा, ठहर, मैं तेरे लिये चाय बना लाती हूं। मां ने सारा प्यार उड़ेलते हुए बोला था।
नहीं मां तुम क्यों परेशान होती हो, कुसुम है न बना लायेगी चाय। और वहीं बैठ गये थे नीरज। कुसुम चाय बनाने लगी थी और मन ही मन कह रही थी-रहने दो नहीं बोलना मैंने आइसक्रीम के बारे में।
मन ही मन बहुत दुखी थी कुसम, सारे दिन का इंतजार काफूर हो चुका था। नीरज वहीं मां के पास बैठकर टीवी देखने लगे थे। रात हो गयी थी। सभी ने खाना खा लिया था। आज कुसुम का मन बहुत उदास था। साथ में थकान भी हो रही थी। आज उसकी कमर व पेट में भी हल्का-हल्का दर्द हो रहा था। जैसे-तैसे वह काम निपटकर वह अपने कमरे में आ गयी।
कितने नखरे वाली थी वह मां के घर में। ये नहीं खाना, वो नहीं खाना, परंतु मां कुछ न कुछ बना कर खिला ही देती थी। यहां तो खाऊं या नहीं खाऊं, अभी सो जाऊं, किसी को परवाह ही नहीं। धीरे से वह बिस्तर पर लेट गयी। थोड़ी देर बाद नीरज कमरे में आये और धीरे से बोले-सो गयी क्या। नीरज को पता था कुसुम ने खाना नहीं खाया है। कुसुम कुछ नहीं बोली और चुपचाप आंखें बंद कर लेटी रही।
नीरज बाहर गये और जब लौटे तो उनके हाथ में एक थाली थी और एक हाथ में पानी की बोतल। तुमने खाना खा लिया। नीरज ने बिस्तर पर खाना रखते हुए पूछा।
तुम्हें क्या मतलब, जिऊं या मरूं। गुस्से से बोली थी कुसुम। नीरज ने कुसुम के पेट पर हाथ रखते हुए कहा, कैसी है मेरी बिटिया। तभी अंदर से शिशु ने हरकत की थी। चलो उठो खाना खा लो, मुझे जोर से भूख लगी है।
क्या भूख लगी है अभी तो तुमने खाना खाया मां-बाबू के साथ, आश्चर्य से पूछा था कुसुम ने।
थोड़ा उनके साथ, थोड़ा अपनी बिटिया के साथ मुस्कराकर नीरज बोले थे और एक रोटी का निवाला कुसुम के मुंह में डाल दिया था।
अच्छा चलो जल्दी से खा लो, मैं तुम्हारे लिये पिस्ते वाली आइसक्रीम लाया हूं। बहुत पसंद है न तुम्हें। कुसुम की आंखें फैल गयी थीं। उसे आश्चर्य हो रहा था कि मैंने तो कहा नहीं था आइसक्रीम के बारे में। फिर कैसे जान ली नीरज ने मन की बात। सीने से लगी थी कुसुम नीरज के।
समय अपनी रफ्तार नहीं छोड़ता और धीरे-धीरे वह वक्त भी आ गया जब अंदर का शिशु बाहर आने के लिए बेताब था।
सुबह हुई, कुसुम नीरज का टिफिन तैयार करने लगी। नीरज नहाने चले गये। कुसुम के कमर व पेट में दर्द शुरू हो गया था।
कुसुम ने दर्द सहते-सहते टिफिन तैयार किया। वह सुबह-सुबह सब को परेशान नहीं करना चाहती थी परंतु उसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था और वह पेट पकड़कर चीख के साथ वहीं बैठ गयी। नीरज शर्ट का बटन लगाते-लगाते कुसुम के पास पहुंच गये। क्या हुआ कुसुम, क्या हुआ।
बहुत तेज दर्द हो रहा है। कुसुम के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था।
कुसुम की चीख मां ने भी सुन ली थी। और पास आकर बोली थी-नीरज इसे अस्पताल ले जा, शायद टाइम पूरा हो गया है।
अस्पताल में चारों तरफ भीड़ थी। सभी परेशान, दुखी लाचार। नीरज ने तुरंत कार्ड बनवाया और डाक्टर का इंतजार करने लगे।
लेकिन कुसुम का दर्द बढ़ता जा रहा था। आखिर नीरज से कुसुम की हालत देखी नहीं गयी वह तुरंत रिसेप्शन पर आ गये। और वहां बैठी महिला से पूछा, कब आयेंगे डाक्टर? मेरी वाइफ को बहुत तकलीफ है। और थोड़ा चिंतित भी हुए थे नीरज। नीरज को परेशान हुआ देख रिसेप्शन पर बैठी महिला बोली, परेशान मत होइये। मैं अभी पूछ कर बताती हूं। वह फोन मिलाने लग गयी थी।
फोन करने के बाद रिसीवर रखते हुए बोली, मरीज कहां है उन्हें अंदर भेज दीजिये।
कुसुम अंदर चली गयी। थोड़ी देर बार नर्स बाहर आयी और बोली, भर्ती करना होगा।
नीरज खुद भी घबरा रहे थे। उन्होंने तुरंत मां को फोन किया और बताया कि उन्होंने कुसुम को भर्ती कर लिया है। इधर गाय भी परेशान थी। शायद उसने भी बछड़ा देने की तैयारी कर ली थी। मां ने देखा कि गाय चिल्ला रही थी। पास में एक ग्वाला रहता था। उन्होंने सोचा चलो उसी को बुला लाते हैं।
थोड़ी देर बाद ग्वाला उनके साथ था। उसने गाय को देखा और बोला-माता जी अच्छा यह होगा कि आप किसी जानवर के डाक्टर को बुला लें, आजकल जानवर भी स्पेशल इलाज मांगते हैं।
गाय जमीन पर बैठ गयी थी उसकी आंखें बड़ी-बड़ी हो गयी थी। गाय की हालत देख माताजी ने ग्वाले से कहा तू ही किसी से बुला ला डाक्टर को।
ग्वाले के जाने के बाद, माता जी ने सोचा, क्यों न गुड़ वाला गर्म पानी ले आऊं और झट से वो गुड़ वाला गर्म पानी लेने चली गयीं।
मां के गर्म पानी लाने से पूर्व ही गाय ने एक सुंदर-सी बछिया को जन्म दे दिया था। वह तुरंत ही अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रही थी। मां के तो खुशी का ठिकाना न रहा, एक तो डाक्टर के पैसे बचे, ऊपर से बछिया, बहुत खुश थी मां।
उधर, कुसुम भी दर्द से व्याकुल थी और नर्स से बोली, सिस्टर कुछ करो न, बहुत दर्द हो रहा है, मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। तभी डाक्टर आ गयी। उन्होंने कुसुम की जांच की। फिर थोड़ी देर बाद बाहर आकर बोली कुसुम के साथ कौन है। नीरज भागे-भागे पास आये और बोले-जी मैं हूं कुसुम के साथ। मैं उसका हसबेंड हूं और नर्वस हो पूछने लगे-सब ठीक है न।
डॉक्टर ने बोला-आपरेशन करना होगा, नाल बच्चे के गले में फंसी हुई है।
नीरज आपरेशन के नाम से परेशान हो गये। थोड़ी देर शांत रहने के बाद, हिम्मत हारकर बोले, जो कुसुम और बच्चे के लिए ठीक हो वही करिये।
नर्स फिर इशारा करते हुए बोली-वहां रिसेप्शन पर पैसे जमा करवा दीजिये। नर्स अंदर चली गयी थी।
उधर मां बहुत खुश थी परंतु साथ में चिंतित भी थी कि कुसुम लड़का जनेगी या लड़की। यदि लड़की हुई तो? कांप-सी गयी थी मां। आखिर आपरेशन सफल हुआ। कुसुम ने एक नहीं, दो कन्याओं को जन्म दिया।
कुसुम बेसुध पड़ी थी। नीरज परेशान बाहर कुर्सी पर बैठे दरवाजे की तरफ ताक रहे थे। तभी दरवाजा खुला नर्स हाथ में कपड़े में लिपटी नवजात शिशु को लिये हुए थी।
नीरज तुरंत खड़े हो गये और नर्स के पास आ गये और नर्स से पूछा- कैसी है कुसुम। ठीक है और धीरे से बोली थी नर्स-बेटियां हुई हैं।
नीरज बहुत खुश थे और बोले-क्या मैं कुसुम से मिल सकता हूं। नहीं अभी वो बेहोश हैं। थोड़ी देर बाद। नर्स बोली।
नीरज ने तुरंत मोबाइल निकाला और मां को फोन किया। नीरज के बोलने से पहले ही मां बोल पड़ी- अरे बेटा, हमारी गाय ने बड़ी सुंदर-सी बछिया जनी है-मैं तो मंदिर में प्रसाद चढ़ाऊंगी। तभी नीरज ने बोला-मां बधाई हो, लक्ष्मी आई है। बेटियां हुई है मैं पापा बन गया और तुम दादी।
मां शांत थी। उन्होंने कोई भी जवाब नहीं दिया। नीरज आज बहुत खुश थे। उन्होंने दोनों शिशुओं का माथा चूमा और बोले-मैं तो इसे डाक्टर बनाऊंगा और दूसरी को देखते हुए शांत हो गये, फिर बोले-इसे भी।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट