ट्रूडो के पार्टी नेता पद से इस्तीफा देने की संभावना..
ट्रूडो के पार्टी नेता पद से इस्तीफा देने की संभावना..
ओटावा, 07 जनवरी । कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो को भारत से पंगा लेना महंगा पड़ता दिख रहा है। खबर है कि ट्रूडो आज ही इस्तीफा दे सकते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, बुधवार को कनाडाई मंत्रियों की बैठक से पहले ही ट्रूडो को ये घोषणा करनी है, इसलिए वो आज ही इस्तीफा दे सकते हैं।
राष्ट्रीय कॉकस बैठक से पहले करेंगे घोषणा
द ग्लोब एंड मेल ने सूत्रों का हवाला देते हुए बताया कि कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो सोमवार को इस्तीफा देने की घोषणा कर सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि उम्मीद है कि वह लिबरल पार्टी के नेता के रूप में इस्तीफा दे देंगे।
सूत्रों ने ग्लोब एंड मेल को बताया कि ट्रूडो कब पद छोड़ने की अपनी योजना की घोषणा करेंगे ये अभी साफ नहीं है, लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह बुधवार को एक प्रमुख राष्ट्रीय कॉकस बैठक से पहले होगा।
पार्टी को चुनाव में हार का डर
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रूडो तुरंत पद छोड़ देंगे या नए नेता का चयन होने तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहेंगे। ट्रूडो ने 2013 में लिबरल नेता के रूप में पदभार संभाला था जब पार्टी गहरे संकट में थी और पहली बार हाउस ऑफ कॉमन्स में तीसरे स्थान पर आ गई थी।
दरअसल, ट्रूडो के इस्तीफे का कारण ये है कि उनकी पार्टी चुनाव से पहले हुए सर्वेक्षणों में उदारवादी कंजर्वेटिवों से बुरी तरह हार रही है। बता दें कि ट्रूडो ने कुछ दिनों पहले ही अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की थी। उन्होंने अमेरिका से संबंध सुधारने की कोशिश की थी, लेकिन ट्रंप से उन्हें कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली।
जल्द ही चुनाव कराने की उठ सकती मांग
अगर कनाडाई पीएम इस्तीफे देते हैं तो जल्द ही वहां चुनाव कराने की मांग उठने की संभावना है। एक सूत्र ने बताया कि पीएम ट्रूडो ने वित्त मंत्री डोमिनिक लेब्लांक के साथ चर्चा की है कि क्या वह अंतरिम नेता और प्रधानमंत्री का चेहरा दोनों हो सकते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि अगर वो नेतृत्व के लिए योजना बनाते हैं तो यह अव्यवहारिक होगा।
भारत से दुश्मनी पड़ी महंगी
ट्रूडो सरकार के हाल ही में भारत सरकार के साथ भी संबंध खराब हो गए थे। खालिस्तानी समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद ट्रूडो सरकार ने इसमें भारत का हाथ बताया था, जिसके बाद भारत ने करारा जवाब दिया था। यहां तक की कनाडा के राजनयिक को भी भारत ने वापस भेज दिया था, जिसके बाद कनाडा ने भी ऐसा किया।
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क्यों उठी इस्तीफे की मांग?
लिबरल पार्टी का जनमत सर्वेक्षणों में खराब प्रदर्शन: हालिया सर्वेक्षणों से पता चला है कि आगामी चुनावों में लिबरल पार्टी को विपक्षी कंजरवेटिव्स से करारी हार का सामना करना पड़ सकता है।
पार्टी के अंदरूनी मतभेद: ट्रूडो के करीबी सहयोगी, वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने उनके खर्च बढ़ाने के प्रस्तावों का विरोध किया, जिसके बाद इस्तीफा देकर ट्रूडो पर “राजनीतिक नौटंकी” का आरोप लगाया।
एनडीपी का समर्थन वापसी का ऐलान: नई डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) ने भी लिबरल सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की धमकी दी है।
इस्तीफे की संभावनाएं
ट्रूडो इस्तीफा देकर नए नेता को मौका देने की योजना बना सकते हैं। पार्टी के अंदर चर्चा है कि अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में वित्त मंत्री डोमिनिक लेब्लांक का नाम आगे बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, इससे लिबरल पार्टी को आगामी चुनावों से पहले स्थिरता बनाए रखने में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
जस्टिन ट्रूडो का राजनीतिक सफर: उत्थान से पतन तक की कहानी
लिबरल पार्टी के नेता बने (अक्टूबर 2013): जस्टिन ट्रूडो, पूर्व प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो के बेटे, ने उस वक्त लिबरल पार्टी की कमान संभाली, जब पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में थी। 2011 के चुनाव में लिबरल पार्टी पहली बार संसद में तीसरे स्थान पर थी और सत्ता से सात साल बाहर रह चुकी थी।
ऐतिहासिक चुनाव जीत (अक्टूबर 2015): ट्रूडो ने “परिवर्तन और आशा” के संदेश पर चुनाव प्रचार किया और कंजर्वेटिव पार्टी को हराकर बड़ी जीत दर्ज की। यह पहली बार था जब तीसरे स्थान पर रहने वाली कोई पार्टी चुनाव जीतकर सत्ता में आई।
नैतिकता नियमों का उल्लंघन (दिसंबर 2017): कनाडा के नैतिकता आयुक्त ने पाया कि ट्रूडो ने आगा खान से छुट्टियां, उपहार और उड़ानें स्वीकार करके हितों के टकराव के नियम तोड़े। यह किसी प्रधानमंत्री द्वारा किए गए ऐसे पहले उल्लंघन के रूप में दर्ज हुआ।
एसएनसी-लवलिन घोटाला (फरवरी 2019): इस विवाद ने ट्रूडो सरकार की छवि को गहरा झटका दिया। पूर्व न्याय मंत्री जोडी विल्सन-रेबॉल्ड ने ट्रूडो सरकार पर आरोप लगाया कि उन्होंने एक कंपनी को भ्रष्टाचार के मुकदमे से बचाने का दबाव बनाया। इस विवाद में दो प्रमुख महिला मंत्रियों का इस्तीफा हुआ, जिससे ट्रूडो की नारीवादी छवि को नुकसान पहुंचा।
ब्लैकफेस विवाद (सितंबर 2019): 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान, ट्रूडो की पुरानी तस्वीरें सामने आईं, जिसमें वे ब्लैकफेस मेकअप किए हुए थे। उन्होंने माफी मांगी और इसे अपने जीवन की ‘गलतियों’ में से एक बताया।
अल्पमत सरकार का गठन(अक्टूबर 2019): इस बार के चुनाव में ट्रूडो की पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाई और उन्हें विपक्षी दलों के समर्थन से सरकार चलानी पड़ी।
वित्त मंत्री का इस्तीफा (अगस्त 2020): महामारी के दौरान आर्थिक नीतियों को लेकर ट्रूडो और वित्त मंत्री बिल मॉर्नेउ के बीच मतभेद बढ़े। साथ ही, एक चैरिटी से जुड़े विवाद के कारण मॉर्नेउ को इस्तीफा देना पड़ा।
बहुमत पाने में असफल (सितंबर 2021): ट्रूडो ने चुनाव जल्दी कराने का निर्णय लिया, लेकिन मतदाताओं ने उन्हें बहुमत नहीं दिया। उनकी पार्टी फिर से अल्पमत में रही।
विशेष चुनाव में हार (जून 2024): उदारवादियों ने अपनी सबसे सुरक्षित सीटों में से एक गंवा दी, जिससे पार्टी की गिरती लोकप्रियता स्पष्ट हो गई। ट्रूडो ने बावजूद इसके पद पर बने रहने का फैसला किया।
एनडीपी का समर्थन वापस लेना (सितंबर 2024): एनडीपी ने ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस ले लिया। यह कदम सरकार को कमजोर करने वाला साबित हुआ और ट्रूडो को नए गठबंधन बनाने पर मजबूर कर दिया।
अमेरिकी टैरिफ का खतरा (नवंबर 2024): अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा से आयात होने वाले उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की। यह ट्रूडो सरकार के लिए बड़ा झटका था, क्योंकि कनाडा की अर्थव्यवस्था निर्यात पर निर्भर है।
बड़े सहयोगियों का जाना (दिसंबर 2024): वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने ट्रूडो द्वारा कम पद लेने का निर्देश मिलने के बाद इस्तीफा दे दिया। एनडीपी नेता जगमीत सिंह ने जनवरी 2025 में अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा कर दी, जिससे ट्रूडो सरकार पर संकट के बादल और गहरा गए।
प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की अटकलें (जनवरी 2025): लिबरल पार्टी की आपातकालीन बैठक से पहले ट्रूडो अपने पद छोड़ने की घोषणा कर सकते हैं।
क्या कहती हैं रिपोर्ट्स?
ग्लोब एंड मेल: ट्रूडो जल्द ही इस्तीफे की घोषणा कर सकते हैं।
रॉयटर्स: वित्त मंत्री और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ इस्तीफे की संभावनाओं पर चर्चा जारी है।
जस्टिन ट्रूडो की कहानी बताती है कि राजनीति में सफलता और असफलता का खेल कितना उतार-चढ़ाव भरा हो सकता है। शुरुआती दिनों की चमकदार छवि और मजबूत जनसमर्थन के बावजूद, विवादों और असफल नीतियों ने उनकी लोकप्रियता को गिरा दिया।
दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट