टूटती कड़ी की वजह..

टूटती कड़ी की वजह..

-मनोज आजिज-

उमस भरी गर्मी की दोपहरिया में
पंखों पर जीतीं हैं पंछियां
अब पेड़ों में ठंडक नहीं है
चूंकि कंक्रीट की गिरफ्त में हैं वो
और पंछियां मुंडेर पर भी नहीं बैठतीं
खुद को महफूज नहीं पातीं
ये सोच कर कहीं
आदमी देख न ले।
घर हैं, घर के आंगन भी हैं,
और आंगन में पेड़ भी
पर, लम्बी डालियां काट दी जाती हैं
ताकि खिड़की से कमरे में न चलीं आये।
हरी पत्तियां, पत्तों से भरी डालियां
बहुत अच्छी लगती हैं
पर, दूर से-
आदमी आजकल करीबी से गुरेज करने लगा है।
वही आदमी मंचों
से मशहूर भाषण देता है
स्लोगन भी दोहरवाता है।
हाय, अपनी बातों पर
अमल करना भूल जाता है
जब वह अपना घर लौटता है
एक दूसरे चेहरे के साथ।
क्या कोई इस टूटती कड़ी की वजह
ढूंढ़ सकता है?

दीदारे ए हिन्द की रीपोर्ट

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