खुला आसमान

खुला आसमान संध्या की बेला और बाहर हल्की बारिश, मैं खिड़की से सटी हुई पलंग पर बैठी बाहर देख रही थी। पत्तों पर गिरती पानी की बूंदें निश्छल स्वच्छ सुंदर चमकदार नजर आ रही थीं। नजरें जैसे नन्ही-नन्ही बूंदों पर टिकी हुई थीं कि तभी राशि ने मुझे आवाज लगाई, दादी, आप क्या कर रही … Continue reading खुला आसमान