खुद में ‘ब्लैक बॉक्स’
खुद में ‘ब्लैक बॉक्स’
ब्लैक बॉक्स फुदक रहा था। उसे राष्ट्रीय घोषित किया जा चुका था, बल्कि भारतीय राष्ट्रवाद में ब्लैक बॉक्स अब एक अनिवार्य अंग की तरह हमारी अखंडता का प्रतीक मान लिया गया था। देश अब ‘कुछ भी हो सकता है’ जैसी परिस्थिति से बाहर निकलने के लिए यह सुनिश्चित कर रहा है कि कुछ न होने के लिए हर नागरिक को ब्लैक बॉक्स से जोड़ दिया जाए। दरअसल ब्लैक बॉक्स अब लोकतंत्र का ऐसा तंत्र विकसित करेगा जिससे हर नागरिक अपने-अपने हाल पर सुरक्षित मान लिया जाएगा। मुफ्त राशन के बाद मुफ्त ब्लैक बॉक्स का वितरण शुरू करते हुए सभी नेतागण प्रसन्नता के साथ आश्वासन दे रहे हैं कि जनता अब महसूस करेगी कि वह सुरक्षित है। जनप्रतिनिधि इस प्रयास में थे कि शीघ्र अति शीघ्र हर घर ब्लैक बॉक्स पहुंच जाए ताकि कोई यह न कह पाए कि आजादी के बाद कुछ खास नहीं किया। अब जो कुछ करना है, ब्लैक बॉक्स को ही करना है। जब कभी कहीं कोई शिकायत होगी तो यही बताएगा कि हो क्या रहा है।
अब तक एक ब्लैक बॉक्स मेरे घर में भी लग चुका है। पड़ोसी से पहले लगा क्योंकि हम सरकार की हर योजना का लाभ उठाना जान चुके हैं। मुझे लगा ब्लैक बॉक्स आ गया, मतलब यह सरकार को मेरा हाल सुनाएगा, लेकिन यह उल्टा मुझे ही नियंत्रित करने लगा। इसने पहले ही दिन मुझे झोंपड़ी से बाहर निकलने से रोकते हुए कहा कि बाहर से बेहतर अब घर है। खेत में जाने लगा तो फिर ब्लैक बॉक्स ने रोकते हुए कहा कि
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खेती से अच्छा है मुफ्त का राशन खाओ। ब्लैक बॉक्स मुझे हर दिन समझा देता है कि जिंदगी में कुछ न करने से ही कुछ न कुछ सुरक्षित होगा, वरना उम्रभर ‘कुछ भी हो सकता है’, के भय में रहोगे। ब्लैक बॉक्स मेरे धर्म के अनुकूल, जाति के स्वरूप और राजनीति के बहुरूप को एक साथ संतुष्ट करता है। यानी जब से ब्लैक बॉक्स आया है, मैं खुद में सशक्त हो रहा हूं। कभी अपनी जाति के कारण और कभी धर्म के कारण या कभी देश को आलोचना से दूर रखकर, बल्कि अब तो मैं ब्लैक बॉक्स का ही मुखबिर हो गया हूं।
मैं अपने दाएं-बाएं से सुरक्षित इसलिए हूं क्योंकि मेरा ब्लैक बॉक्स सत्ता का अति भरोसेमंद है। यह बिना दुर्घटना भी बता सकता है कि कहां परिस्थितियां बिगड़ सकती हैं। दरअसल इसी ब्लैक बॉक्स के कारण मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता गई है। इसे मालूम है कि किसी नेता को ‘पप्पू’ कैसे बनाना है, बल्कि मेरे मोहल्ले के लोग अब ब्लैक बॉक्स की वजह से मेरी शरण में रहते हैं। ब्लैक बॉक्स अब एक प्रशासनिक सिस्टम है। पहले विमानों के गिरने की बात बताता था, अब यह हर गिरे हुए को भी उठा सकता है। हर भारतीय को अब उठने के लिए बस यही चाहिए। आश्चर्य यह कि देश अब आकाश के बजाय जमीन पर ब्लैक बॉक्स लिए घूम रहा है। हर झोंपड़ी और गरीब से अति गरीब तक को ब्लैक बॉक्स बनाया जा रहा है। दरअसल गरीब के गरीब बने रहने से तरक्की का पता लगाना इतना मुश्किल है कि अब गरीब ही ब्लैक बॉक्स की तरह बता रहा है कि देश उसके पास खड़ा है। देश जाति में कब रहे और कब हिंदू-मुस्लिम हो जाए, यह तब मालूम होगा जब हम ब्लैक बॉक्स बनकर खुद को ढूंढेंगे। मैं खुशनसीब हूं कि देश ने मुझे भी अपनी तरक्की का मुखबिर बना दिया है। मैं खुद में ब्लैक बॉक्स बनकर जब कानून तोड़ता हूं, संस्थानों को झुकते देखकर मौन रहता हूं, इतिहास को टूटते और आजादी को बिखरते देखकर भी आगे बढ़ता हूं, तो वाकई देश की तरक्की में मैं स्वयंसिद्ध हो जाता हूं। इसलिए अपने भीतर और आसपास ब्लैक बॉक्स बनकर राष्ट्रीय उन्नति में प्रगतिशील बनें।
(स्वतंत्र लेखक)
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