केन्या में गरीबों को नगदी देने के बेहतर नतीजे..

केन्या में गरीबों को नगदी देने के बेहतर नतीजे..

-सनत कुमार जैन-

इन दोनों मुफ्त की रेवड़ी को लेकर देश में बड़ी बहस हो रही है। यदि लोगों को मुफ्त में पैसा देंगे, तो क्या होगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, गरीबों के हाथ में धन राशि उपलब्ध कराने की बात, पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह मानकर चल रहे हैं, कि मुफ्त की रेवड़ी से सरकारी खजाने पर भार बढ रहा है। सभी राज्य सरकारें कर्ज में हैं। ऐसी स्थिति में सब्सिडी वाली योजनाएं या मुफ्त की योजनाएं शुरू नहीं की जानी चाहिए। इस संबंध में अमेरिका की चैरिटी संस्थान एवं नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बैनर्जी एवं अन्य शोधकर्ताओं ने अफ्रीका के गरीब देश केन्या में एक सर्वे किया है। केन्या की सरकार पश्चिम केन्या के हजारों ग्रामीणों को 1875 रुपए प्रतिमाह नगद राशि का भुगतान कर रही है। 2 वर्ष के नतीजे 1 दिसंबर को जारी किए गए हैं। जिन लोगों को नगद राशि मिल रही है। उनकी आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हुई है। यूनिवर्सल बेसिक इनकम के तहत हर किसी को बिना शर्त मदद दी जा रही है। जिसका आय और रोजगार से कोई संबंध नहीं होता है। फिनलैंड से लेकर कैलिफोर्निया तक एक वर्ग विशेष को कुछ समय तक नगद राशि दी गई है। शोध संस्थान ने केन्या में इसका परीक्षण विस्तृत रूप में किया है। यहां गांव के हर वयस्क को 12 वर्ष तक निश्चित राशि दी जाएगी।

प्रयोग के तौर पर 195 गांव में 22000 से अधिक व्यक्तियों को यह पैसा दिया गया है। वहीं 11000 लोगों के समूह को कुछ भी नहीं दिया गया। जिन लोगों को पैसा दिया गया। उन्होंने खेतों में मजदूरी छोड़कर दुकान खोली। कृषि की मजदूरी से हटकर दूसरे व्यवसाय की तरफ अग्रसर हुए। उनकी आय और मुनाफा दोगुना हो गया। पैसा जिन्हें दिया गया था। उनका स्वास्थ्य भी पहले से अच्छा हुआ। उन्होंने अच्छे प्रोटीन वाला खाना खाया। मानसिक परेशानियां बहुत कम रही। वहां की जमीन भी महंगी हो गई। गरीबों की क्रय शक्ति बढ़ गई। शोधकर्ताओं के अनुसार जो नगद राशि उन्हें दी गई। उससे उन लोगों को खर्च करने के लिए पैसा मिला। स्थानीय स्तर पर कारोबार बढ़ा। गरीब को जो पैसा दिया जाता है, वह बचाने के स्थान पर खर्च करता है। जो अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाता है। अमेरिका की चैरिटी संस्था ने कन्या में जो स्टडी की है। उसके बाद कैलिफोर्निया के अधिकारियों में दिलचस्पी जाग गई है। अमेरिका में फिनलैंड, मिशिगन में लोगों को मुफ्त पैसा देने का कार्यक्रम शुरू हुआ है। यहां पर गर्भवती महिलाओं को 1.25 लाख रूपये दिए जा रहे हैं। यहां पर बच्चों को पहले साल में हर माह 4000 रूपये दिए जाएंगे। गरीबों को नगदी पैसा मिलता है, तो वह उसे खर्च करते हैं। इससे आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा सुधार देखा गया है। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बैनर्जी एवं अन्य शोधकर्ताओं ने 2 वर्ष लगातार शोध करके 1 दिसंबर को रिपोर्ट जारी की है।

भारत के संदर्भ में यदि हम इस बात को देखें, तो गरीब के हाथ में जो पैसा आता है। वह उसको खर्च कर देता है। जिसके कारण आर्थिक प्रगति बड़ी तेज गति से होती है। सभी वर्गों तक वह पैसा पहुंचाने लगता है। वहीं मध्यमवर्गीय परिवार कुछ पैसा खर्च करता है, और कुछ बचा लेता है। मध्यमवर्गी परिवारों का खर्च सीमित होता है। उनकी आय, खर्च की तुलना में बचत ज्यादा होती है। वही बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थान, कॉरपोरेट, सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं के पास जो पैसा जाता है। वह अधिकांशत: ब्लॉक हो जाता है। उनका पैसा ऐसी जगह पर निवेश होता है। जिससे कोई रिटर्न नहीं मिलता है। अर्थव्यवस्था के रोटेशन में यह सबसे बड़ी रुकावट है। जो अर्थव्यवस्था को नकारात्मक दिशा की ओर ले जाता है। भारत में यदि पैसा गरीबों के हाथ तक जाएगा, तो निश्चित रूप से वह अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। मनरेगा की मजदूरी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जिसने ग्रामीण अंचलों की अर्थव्यवस्था को 2004 के बाद बहुत बेहतर बनाया। सामाजिक संरचना में गरीबों के पास जो भी पैसा जाता है। उसको वह खर्च करते हैं। उससे छोटे-मोटे कारोबार शुरू करते हैं। अपने स्तर को सुधारने की दिशा में प्रयास करते हैं। जिसके कारण अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयां मिलती हैं। संपन्नता बढ़ती है। मुफ्त की रेवड़ी यदि सकारात्मक रूप से दी जा रही है। इससे अर्थव्यवस्था तेजी के साथ बढ़ती है। सरकार का टैक्स बढ़ता है। समाज के सभी वर्गों तक पैसा पहुंचाने लगता है। बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बार पैसा रोटेट होता है। जिसके कारण अर्थव्यवस्था मजबूत होती है। सामाजिक संपन्नता बढ़ती है। इस तथ्य को भी हमें ध्यान में रखना होगा। सर्कुलेशन में जो मनी रहेगी। वह अच्छे परिणाम देकर जाएगी। जो मनी ब्लॉक हो जाएगी। उससे फायदा कम, नुकसान ज्यादा होगा। यह समझने की जरूरत है। महंगाई, टैक्स, पेट्रोल एवं डीजल की बढ़ती कीमतों से भारत में गरीब गरीब हो रहा है। अमीर और भी अमीर होता चला जा रहा है। समस्या की जड़ भी यही है। गरीबों के पास खर्च करने के लिए पैसा नहीं है। मध्यम वर्ग भी अपनी बचत का बहुत सारा हिस्सा खर्च कर चुका है। खर्च की तुलना में उसकी आय कम हो रही है। जिसके कारण अर्थव्यवस्था में तरह-तरह के बदलाव देखने को मिलने लगे हैं। रिजर्व बैंक में अर्थशास्त्री की जगह एक आईएएस अफसर बैठा हुआ है। वर्तमान स्थिति के लिए सबसे बड़ा दुष्परिणाम है।

दीदार ए हिन्द की रपोर्ट

Related Articles

Back to top button