कृषक की गाथा — मिट्टी से मन तक.

कृषक की गाथा — मिट्टी से मन तक.

मिट्टी की महक से है उसकी आराधना,
खेत-खलिहान में वो करता नित नमन।
धूप-छाँव में जो तपे, जो झूके न कभी,
कृषक है धरती का सबसे बड़ा सजन।

खून-पसीने से लिखी उसकी यह कहानी,
संघर्ष की लौ में जलती है आह्वान।
फसलें बोए, सपने रोपे, मन के वीर,
हरियाली से भर दे वह वीरान मैदान।

बूंद-बूंद में समेटे अमृत सावन के,
हवा की मादक छुअन में बसी है जान।
वर्षा की थाप से गूँज उठे खेतों की रागिनी,
जिसमें हर बीज फूले, फलें आन-बान।

पर अब आए संकट, जुल्म और परेशानियाँ,
खतरा मंडरा रहा मिट्टी के इस मान।
कीटनाशक, प्रदूषण ने मारा तन-मन,
बूंद-बूंद में घुला विष, हो गया विस्तार।

पर किसान न हार मानता, ना झुकता कभी,
रखे जोश अटल, अडिग, सीना तान।
धरती माँ की पुकार सुने, नई राह चुने,
प्रकृति संग करे संवाद, ले जीवन ज्ञान।

परिवार का भार, ऋण का दंश, सब झेले,
फिर भी मुस्कुराए, आशा की ज्योति जलाए।
साझा करे सपनों को, बाँटे सुख-दुख,
कृषक के मन में नव युग के संदेश गूंजे।

चलो उठो किसान, नयी किरणों को पकड़ो,
सुरक्षित जीवन, स्वच्छ धरती का सपना सजा लो।
मिट्टी के इस मर्म को हम सब समझें आज,
धरती पर फिर से बसाएं, अमृत के झरने।

ऐसा किसान जो मिट्टी का हो सच्चा सखा,
वही बदल सकता है विश्व का भाग्य सारा।
मेहनत, प्रेम, समर्पण हो उसका हथियार,
तो होगा जीवन पुष्पित, होगा सारा संसार।

— प्रियंका सौरभ

दीदार ए हिन्द की रीपोर्ट

Related Articles

Back to top button