अन्तर्जगत की यात्रा का विज्ञान है ध्यान…

अन्तर्जगत की यात्रा का विज्ञान है ध्यान…

यदि जीवन में तनाव, चिंता, निराशा, लोभ, अहंकार, अवसाद, घृणा और द्वेष आदि बढ़ रहे हैं तो आवश्यकता है ध्यान की। ध्यान हमारे जीवन का अत्यावश्यक अंग है। ध्यान ही साधना है, जो हमें न केवल संसार में जीने की कला सिखाता है वरन् ईश्वर प्राप्ति का प्रमुख साधन है। ध्यान समाधान है प्रत्येक उस समस्या का जो हमें असफलता निराशा, तनाव और अवसाद में धकेल कर बर्बाद करना चाहते हैं। ध्यान एक सुकून है, शांति है जो हमें बाह्य किसी भी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति से प्राप्त नहीं हो सकते। ध्यान हमें धैर्यपूर्वक जीवन जीने की कला सिखाता है। कुछ लोग ध्यान को सांसारिक सुख की आशा से जोड़ लेते हैं, और जब उन्हें वह सुख नहीं मिलता तो वे ध्यान का विरोध करते हैं और कहते हैं ध्यान से कुछ नहीं होता। कुछ लोग सोचते हैं कि जीवन में सब ठीक ठाक चल रहा है, फिर ध्यान की क्या जरूरत है, किन्तु जब समस्या आती है और उन्हें कोई उपाय नहीं सूझता तो बेमन से, अश्रध्दापूर्वक ध्यान को ट्रायल के रूप में स्वीकार करते हैं और फिर मनचाहा समाधान न मिलने पर ध्यान के खिलाफ हो जाते हैं।

कोई कहता है कि ध्यान लगता तो नहीं है नहीं, फिर बेठने से भी क्या लाभ? समय का विनाश ही होता है। उन्होंने ध्यान के सिध्दांत को, मन के विज्ञान को समझा ही नहीं है और एक प्रक्रिया के रूप में ध्यान को केवल अजमाना चाहते हैं और शीघ्र ही निराश होकर ध्यान के विपक्षी हो जाते हैं। कोई कहता है, कौन सी विधि सर्वश्रेष्ठ है, यही निश्चित करना बड़ा कठिन है। कोई कहता है आंख खोलकर ध्यान करो तो दूसरा कहता है आंख बंद करके। कोई कहता है मन को केंद्रित करो तो कोई कहता है मन को स्वतंत्र छोड़ दो। लेटकर ध्यान करें या बैठकर। ध्यान की मुद्रा क्या हो अथवा किस आसन में ध्यान करें। इतने प्रश्नों के जंजाल में फंसा व्यक्ति अंत में यही निर्णय लेता है कि छोड़ो ध्यान के लिये समय ही नहीं है।

सत्यता यह है कि ध्यान एक विज्ञान है जिसे समझकर साधक सांसारिक जगत से सिमटकर अपने अन्तर्जगत की यात्रा प्रारंभ करता है। करो-करो के श्रम से हटकर कुछ न करो में प्रवेश करता है और तब उसे अनुभव होता है कि अंदर भी एक जगत है तो बाह्य जगत से अधिक खूबसूरत, विशाल और शांति को देने वाला है, जहां पहुंचकर साधक के सारे प्रश्नों का अंत हो जाता है, प्रक्रियाएं धराशायी होकर आत्मसुख के मीठे महासागर में डुबकी लगाता है। ध्यान चाहे किसी भी विधि से किया जाए, महत्व इस बात का है कि ध्यानकर्ता के जीवन में क्या परिवर्तन आ रहा है। ध्यान करने वाला साधक स्वयं ही एकांत में बैठकर अपने आप पर नजर डाले और खोज करे कि क्या वह इंसान है जो ध्यान से पहले था, या उसमें कुछ बदलाव आ रहा है।

दीदार ए हिन्द की रिपोर्ट

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