सिलकियारा टनल फिर से…

सिलकियारा टनल फिर से…

-अजय दीक्षित

लोगों की स्मृति में अभी ताजा है कि उत्तराखंड के सिलकियारा टनल में दिवाली की प्रात: 12 नवम्बर को चालीस से ज्यादा मजदूर फंस गये थे। इन 41 मजदूरों को काफी मशक्कत के बाद सफलता पूर्वक निकाला जा सकता था। सभी टी.वी. चैनल और कोई खबर न दिखाकर के इस टनल में फंसे मजदूरों का रेस्क्यू ऑपरेशन ही दिखा रहे थे। यह प्रौजेक्ट नेशनल हाईवे अथॉरिटी की तरह से बनाया जा रहा था ताकि बद्रीनाथ जाने वाले यात्रियों को 27 किलोमीटर का सफर कम चलना पड़े। इसी से इस मंत्रालय के केन्द्रीय राज्यमंत्री वी.के. सिंह बराबर वहां डटे रहे। बीच-बीच में गडकरी और अन्य उच्च अधिकारी और मंत्री आते रहे। कहते हैं कि प्रधानमंत्री फोन पर इस रेस्क्यू ऑपरेशन की पल-पल की खबर लेते रहे। माननीय प्रधानमंत्री ने बाद में इन मजदूरों से बात भी की। निश्चय ही देश के प्रधान पुरुष का यह कृत्य सराहनीय है कि वे मजदूरों की सुध भी लेते हैं। जब अमरीकी सलाहकार के प्रयास और अन्य टेक्निकल लोगों के सुझाव व कृत्य फेल हो गये थे रैट माइनर्स गरीब तबके से थे। नितान्त विपन्नता और गरीबी में जी रहे थे। कुछ टी.वी. चैनलों ने इनके रिहायशी मकान भी दिखलाये। परन्तु न तो सरकार ने और न ही मीडिया ने कहा कि रैट माइनिंग को नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल ने प्रतिबंधित कर रखा है। कुछ कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से इन प्रतिबंध पर रोक लगी हुई है। जो भी हो रैट माइनर्स बहुत खराब स्वास्थ्य के कारण संकट में रहते हैं और प्राय: इनकी सेवा का उपयोग वे धनपति करते हैं जो गैरकानूनी तरीके से हीरे या अन्य बहुमूल्य खनिजों को इनसे खुदवाते हैं। यह भी नहीं मालूम कि इन रैट माइनर्स का बाद में स्वास्थ्य परीक्षण भी हुआ या नहीं। और एक बात और !! जो सत्ताधारियों के प्रवक्ता बाद-बाद में इस अल्पसंख्यक सम्प्रदाय के लोगों से पाकिस्तान जाने को कहते हैं कि इसी सम्प्रदाय के लोग देशद्रोह में लगे रहते हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि ये सभी रैट माइनर्स उसी सम्प्रदाय के धर्मावलम्बी थे। इन रैट माइनर्स ने बाद में जो इन्टरव्यू टी.वी. चैनलों को दिये वे इनकी देशभक्ति को बखूबी बयान करते हैं। और एक बात। कहीं भी यह ज्ञात नहीं हुआ कि यह हादसा किस कम्पनी की लापरवाही से हुआ जो इस टनल को बनाने का ठेका लिये हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि जिस कम्पनी के पास इनको बनाने का ठेका है, उसने इसका कार्य अनेक छोटी-छोटी दूसरी कम्पनियों को कम पैसे में सौंप दिया है जिनको इस प्रकार की टनलिंग का कोई अनुभव नहीं है। प्रश्न यह भी है लापरवाही की जिम्मेदारी तय हो। पहले लोग जब तीर्थयात्रा पर निकलते थे तो अपना श्राद्ध करके जाते थे कि शायद अब लौट कर न आयें ! यह टनल उन कार वालों की सुविधा के लिए बनाई जा रही है जो वीक एण्ड में तीर्थयात्रा के नाम पर पर्यटन कर सकें। यूं भी अयोध्या, काशी, मथुरा में आज जो विकास का कार्य हो रहा है उसे धार्मिक पर्यटन का नाम दिया जा रहा है। भगवान या अपने ईष्ट का स्मरण करने के लिए फाइव स्टार होटल नहीं चाहिए। उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में जो हाईड्रो इलैक्ट्रिक प्रोजेक्ट या सड़कों का चौड़ीकरण या मार्ग सुगम करने के लिए टनल बनाये जा रहे हैं। चारधाम यात्रा के अन्तर्गत सिलकियारा की प्रोजेक्ट तो एक उदाहरण है। ऐसी बहुत सी प्रोजेक्ट चल रही हैं। चारधाम यात्रा की हाई पावर कमेटी ने तय किया है कि बद्रीनाथ में पांच हजार लोग प्रतिदिन (दो हजार कारें) केदारनाथ में प्रतिदिन सात हजार (2800 गाडिय़ां) यमनोत्री में साढ़े चार हजार लोग प्रतिदिन (1800 गाडिय़ां) का लक्ष्य तय किया है। इस हाई पावर कमेटी में कोई भी जियोलोजिस्ट या टेक्निकल एक्सपर्ट नहीं हैं और मात्र नौकरशाही लोग हैं। वे 10 मीटर चौड़ी सड़क बनाना चाहते हैं ताकि दस हजार गाडिय़ां रोज आ सकें। बहुत दिनों से गंगा पर हाईड्रो प्रोजेक्ट का मामला सुप्रीमकोर्ट में लम्बित है। 2013 में केदारनाथ का हादसा शायद अब सत्ताधारी भूल चुके हैं। हम गुलाम मानसिकता से मुक्त होना चाहते हैं पर हमारा लक्ष्य तो भारत को पाश्चात्य सभ्यता जैसा भोगवादी संस्कृति देना है। पक्ष और विपक्ष जो बात-बात पर गांधी प्रतिमा के सामने प्रदर्शन करते हैं, उन्हें चाहिए वे गांधी को पढ़ लें कि गांधी आजादी के बाद किस तरह का भारत चाहते थे??

दीदार ए हिन्द की रेपोर्ट

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