सदस्यों का निलंबन वापस लेने की मांग पर विपक्षी दलों ने किया राज्यसभा से बहिर्गमन
सदस्यों का निलंबन वापस लेने की मांग पर विपक्षी दलों ने किया राज्यसभा से बहिर्गमन

नई दिल्ली, 30 नवंबर। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन 12 सदस्यों का निलंबन वापस लेने की मांग की और जब राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया तो उन्होंने पहले तो हंगामा किया और फिर कुछ देर बाद सदन से बहिर्गमन किया।
शून्यकाल में सदस्यों के निलंबन का मामला उठाते हुए विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि 12 सदस्यों के निलंबन की प्रक्रिया में नियमों और परंपराओं का उल्लंघन किया गया है। उन्होंने कहा कि जब संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी निलंबन का प्रस्ताव रख रहे थे उस समय उन्होंने व्यवस्था का प्रश्न उठाया था लेकिन उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई।
उन्होंने कहा, ‘‘व्यवस्था का प्रश्न उठाने वाले सदस्य को अनुमति दिए जाने का नियम है। लेकिन मुझे इसकी अनुमति नहीं दी गई। यह संसदीय परंपराओं के खिलाफ है।’’ खड़गे ने कहा कि किसी सदस्य के निलंबन के लिए यदि कोई प्रस्ताव पेश किया जाता है तो आसन की ओर से सबसे पहले उस सदस्य का नाम लेना होता है।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि उनका (आसन) मानना है कि किसी सदस्य ने सभापति के प्राधिकार को चुनौती दी है या फिर नियमों की अवहेलना की है तो उस सदस्य का नाम लेने के बाद ही निलंबन का प्रस्ताव पेश किया जाता है…और यह जिस दिन की घटना होती है उसी दिन किया जाना चाहिए था।’’ उन्होंने सदस्यों के निलंबन का फैसला वापस लेने की मांग करते हुए यह आरोप भी लगाया कि निलंबन की कार्रवाई चयनित तरीके से की गई। उन्होंने कहा, ‘‘कई सदस्य (निलंबित) ऐसे हैं, जिनका इस घटना से कोई लेना देना नहीं है।’’
उन्होंने यह सवाल भी उठाया कि पिछले मानसून सत्र में हुई घटना के लिए निलंबन का प्रस्ताव शीतकालीन सत्र में लाया गया। उन्होंने दावा किया कि इस मामले में किसी भी सदस्य का घटना के दिन नाम नहीं लिया गया था और कथित घटना के महीनों बाद प्रस्ताव लाना ही अनुचित है। हालांकि सभापति ने खड़गे की अपील खारिज करते हुए कहा कि राज्यसभा निरंतर चलते रहने वाली संस्था है। उन्होंने कहा कि सदन और सभापति ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए अधिकृत हैं और इसी के तहत सदन ने सोमवार को सदस्यों को निलंबित करने का फैसला किया।
उन्होंने कहा जिन सदस्यों को निलंबित किया गया है, घटना के दिन उनके नाम भी लिए गए थे, उन्हें अपने स्थान पर लौट जाने की अपील भी की गई थी। नायडू ने कहा कि निलंबित सदस्यों को अपनी गलती का एहसास भी नहीं है और उन्होंने अपने कार्य को उचित ठहराया है। उन्होंने कहा, ‘‘कार्रवाई को लोकतंत्र के विरूद्ध कहा जाना उचित नहीं है। उचित यह है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए कार्रवाई की गई है।’’ इसके बाद विपक्षी सदस्यों ने हंगामा आरंभ कर दिया और नारेबाजी शुरु कर दी।
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सभापति ने सदस्यों से ऐसा न करने के लिए कहा लेकिन उनकी अपील बेअसर रही। हंगामे के बीच ही कुछ सदस्यों ने तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सहित दक्षिण के कुछ राज्यों में भारी बारिश और बाढ़ से हुए नुकासान का मुद्दा उठाया। इसके बाद कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी सदस्य सदन से बहिर्गमन कर गए।
थोड़ी देर बाद तृणमूल कांग्रेस के सदस्य भी सदन से बाहर चले गए। संसद के सोमवार को आरंभ हुए शीतकालीन सत्र के पहले दिन कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के 12 सदस्यों को पिछले मॉनसून सत्र के दौरान ‘‘अशोभनीय आचरण’’ करने के लिए, वर्तमान सत्र की शेष अवधि तक के लिए राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया।
उपसभापति हरिवंश की अनुमति से संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस सिलसिले में एक प्रस्ताव रखा, जिसे विपक्षी दलों के हंगामे के बीच सदन ने मंजूरी दे दी थी। कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के सदन से जाने के बाद सभापति ने खड़गे के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सोमवार को संसदीय कार्यमंत्री ने जो प्रस्ताव रखा था उसे सदन ने मंजूरी दी थी। उन्होंने कहा कि 10 अगस्त की घटना के एक दिन बाद उन्होंने इसकी निंदा करते हुए क्षोभ भी जताया था।
उन्होंने कहा, ‘‘कैसे कोई कह सकता है कि सदस्यों (निलंबित सदस्यों को घटना के दिन) को आगाह नहीं किया गया। 33 सदस्यों के नाम लिए गए थे। इनमें उन 12 सदस्यों के भी नाम हैं जिन्हें निलंबित किया गया है। उन्हें आगाह किया गया, अपील की गई और फिर उनके नाम लिए।’’
दस अगस्त की घटना पर हुई निलंबन की कार्रवाई को ‘‘दुर्भाग्पूर्ण’’ करार देते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की खुशी है कि उस जिन सदन में जो हुआ उसे समाचार चैनलों के माध्यम से पूरे देश ने देखा। उन्होंने कहा, ‘‘यदि किसी के मन में आशंका है तो सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध हैं। चैनलों द्वारा प्रदान की गई सूचनाएं भी हैं।’’ उन्होंने कहा कि सभापति होने के नाते किसी पर कार्रवाई करने में उन्हें खुशी नहीं होती लेकिन इसके साथ ही उनकी भी जवाबदेही है।
उन्होंने कहा कि कभी-कभी व्यवधान ठीक है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप रोज ही करें। उन्होंने कहा, ‘‘17 दिनों तक शून्यकाल, प्रश्नकाल और लोक महत्व के विषय नहीं उठाए जा सके।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेजोरिटी इज साइलेंट एंड हैंडफुल ऑफ पीपल आर वायलेंट (सदन में बहुसंख्य लोग चुप रहते हैं और कुछ लोग उग्र हो जाते हैं)।’’
नायडू ने कहा कि उन्हें डर है कि यदि यही चलन जारी रहा तो लोगों का ‘‘व्यवस्था पर से भरोसा उठ जाएगा’’। उन्होंने कहा, ‘‘यह देश के लिए और व्यवस्था के लिए भी नुकसानदेह है।’’ सभापति ने कहा कि वह सरकार का बचाव करने के लिए आसन पर नहीं बैठे हैं। बाद में सभापति ने कहा कि यदि निलंबित सदस्यों को अपनी गलती का एहसास हो तो नेता प्रतिपक्ष और सदन के नेता आपस में चर्चा कर सकते हैं और विपक्ष के प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है।
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