शुरु हुई छठ पूजा की तैयारियां, नहर किनारें तैयार हो रही वेदियां पूर्वांचल और बिहार के लोगों की कानपुर में है अच्छी खासी आबादी
कानपुर में शुरु हुई छठ पूजा की तैयारियां, नहर किनारें तैयार हो रही वेदियां पूर्वांचल और बिहार के लोगों की कानपुर में है अच्छी खासी आबादी
कानपुर, 06 नवंबर। बिहार के विश्वप्रसिद्ध लोकपर्व छठ पूजा की तैयारियां कानपुर में दीपावली के साथ ही शुरू हो गई हैं। संतान की दीर्घायु के लिए रखे जाने वाले इस महाव्रत की शुरुआत आठ नवम्बर से होगी। दीपावली के छठे दिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि को छठ पूजा मनाया जाता है। दीपावली की प्रतिपदा से अर्मापुर, पनकी, सीटीआई नहर घाटों के साथ ही नगर निगम द्वारा बनाए कृत्रिम तालाबों और गंगा किनार वेदी बनाने का सिलसिला शुरू हो गया है, क्योंकि कानपुर में बिहार और पूर्वांचल के लोगों की आबादी काफी संख्या में है।
दीपावली के बाद मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक छठ पूजा का बिहार में सर्वाधिक महत्व है, लेकिन कानपुर में भी बिहार और पूर्वांचल के लोगों की अच्छी खासी आबादी होने के चलते यहां प्रशासन अभी से तैयारियों में जुट गया है। नगर निगम ने पनकी नहर, अर्मापुर नहर, दादा नगर नहर घाटों को संवारने का काम शुरू कर दिया है। वहीं सेंट्रल पार्क, जेपी पार्क समेत अन्य पार्कों पर तालाब खुदाई का काम भी कर दिया गया है। नहाय खाय के साथ ही यह त्योहार शुरु होता है और पहले दिन महिलाएं घरों में साफ सफाई कर लौकी की सब्जी और पका हुआ चावल का सेवन करेंगी। दूसरे दिन कार्तिक मास की पंचमी तिथि पर सुहागिनें गन्ने के रस में बनी खीर का सेवन करेंगी।
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यहां मनेगा छठ पर्व,, अर्मापुर, पनकी नहर, सीटीआई नहर घाट, साकेत नगर नहर, गंगा बैराज, गोला घा , सिद्धनाथ घाट के साथ ही शास्त्री नगर में बनने वाले तालाब में भी छठ पर पूजन होगा। डबल पुलिया में ग्रीन बेल्ट में भी वेदियां बनेंगी। तमाम महिलाएं तो अपने घरों में ही टब में जल भरकर उसमें खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देंगी।
यह है त्योहार की तिथियां
08 नवंबर 2021, सोमवार- नहाय खाय से छठ पूजा का प्रारंभ
09 नवंबर 2021, मंगलवार- खरना
10 नंवबर 2021, बुधवार- छठ पूजा, डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा
11 नवंबर 2021, गुरुवार- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पूजा समापन
36 घंटे का निर्जला व्रत
नहाय खाय के दिन छठ पूजा/व्रत करने वाले परिवार लोग घर को साफ, पवित्र करके पूजा सामग्री एक स्थान पर रखते हैं। इस दिन सभी लोग सात्विक आहार लेते हैं। नहाय खाय के बाद 36 घंटे के निर्जला व्रत महिलाएं रखेंगी। कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर अस्त होते सूर्य को और सप्तमी पर उदय होते सूर्य को पानी के बीच खड़ी होकर अर्घ्य देंगी। सुहागिनें एक दूसरे की मांग में सिंदूर लगाएंगी और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद भी देंगी। इसके बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण दिन खरना होता है। इसे लोहंडा भी कहते हैं। खरना वाले दिन पूरे दिन व्रत रखा जाता है और रात में पूरी पवित्रता के साथ बनी गुड की खीर का सेवन किया जाता है। छठ पूजा के अगले दिन 11 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ देने के साथ ही छठ का कठिन व्रत संपन्न हो जाता है।
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