यादें: टीवी पत्रकारिता की पहली पीढ़ी के पत्रकार थे विनोद दुआ…

यादें: टीवी पत्रकारिता की पहली पीढ़ी के पत्रकार थे विनोद दुआ…..

पद्मश्री पत्रकार विनोद दुआ का सम्मान के साथ दिल्ली में हुआ अंतिम संस्कार

लखनऊ जर्नलिस्ट एसोसिएशन ने कहा- हिंदी पत्रकारिता की अपूर्णीय क्षति

पत्नी डाॅ. चिन्ना एवं बेटी मल्लिका के साथ 👆

लखनऊ/नई दिल्ली। पद्मश्री से सम्मानित हिंदी के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ का दिल्ली में लोधी शमशान घाट पर आज पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया, उनका कल निधन हो गया था। 67 वर्षीय विनोद दुआ का जन्म नई दिल्ली में हुआ था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वे पहले पत्रकार थे, जिन्हे 1996 में रामनाथ गोयनका अवार्ड से सम्मानित किया गया था और 2008 में पत्रकारिता के लिए उन्हे पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था। कोरोना की दूसरी लहर में विनोद दुआ और उनकी पत्नी संक्रमित हो गए थे, दोनों को तबियत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था, विनोद दुआ तो 7 जून को घर लौट आए पर पत्नी डाॅ. चिन्ना का 12 जून को निधन हो गया।
लखनऊ जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष आलोक कुमार त्रिपाठी, उपाध्यक्ष रवि उपाध्याय, मो. इनाम खान, महामंत्री विजय आनंद वर्मा, कोषाध्यक्ष संजय पांडेय, मंत्री त्रिनाथ शर्मा एवं मीडिया प्रभारी रवि शर्मा सहित एलजेए से जुड़े ,भी पत्रकारों ने विनोद दुआ जी के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करते हुए इसे हिंदी पत्रकारिता की अपूर्णीय क्षति बताया है। हिंदी की टेलीविजन पत्रकारिता का विनोद जी सबसे पुराना जाना पहचाना और भरोसेमंद नाम रहा है। चाहे नब्बे के दशक दूरदर्शन के जमाने में डॉ प्रणव राय के साथ के उनके चुनावी विश्लेषण के कार्यक्रम हों या फिर उनका कार्यक्रम परख, स्टार न्यूज का कौन बनेगा मुख्यमंत्री हो या फिर एनडीटीवी का चर्चित जायका इंडिया का या फिर वायर वेबसाइट पर जन गण मन की बात। विनोद जी हर फॉर्मेट में अपनी स्वाभाविक तरीके से कही गयी गहरी बात बोल जाते थे, जो सुनने वाले के दिल में सालों तक याद रहती थी। विनोद दुआ टीवी के सबसे नैसर्गिक पत्रकार थे, जो बिना चीखे चिल्लाये झुंझलाए ऐसा तीखा सवाल पूछते थे कि जहां सवाल का जवाब देने वाला सुलग जाता था तो इसे देख रहा दर्शक तक उस सवाल और उनके अंदाज की दाद दिये बिना नहीं रह पाता था।


रिक्शे पर बैठ कर इंटरव्यू करने जाते थे. . . . .


मध्य प्रदेश विधानसभा के 2003 के चुनाव में विनोद जी भोपाल में लंबे वक्त तक रहे स्टार न्यूज के कार्यक्रम कौन बनेगा मुख्यमंत्री के लिये, इसके लिये विनोद जी को ऑटो रिक्शा में बैठकर किसी नेता के घर तक जाना होता था। उस वक्त विनोद जी की सहजता और विनोद प्रियता देखते ही बनती थी। कैमरामैन के एक एक निर्देश का वो जिस तरीके से बिना माथे पर शिकन लिए हुए पालन करते थे। वो कहते थे कि कैमरामैन इस मीडियम का राजा है, राजा खुश रहेगा तो पूरी प्रजा खुश रहेगी यानि कि हमारा सूट खूबसूरत होगा हम ज्यादा देखें जायेंगे। आज की टीवी पत्रकारिता में अपने को ही सर्वज्ञ ज्ञानी ध्यानी मानने वाले एंकर जिस तरीके से टीवी स्क्रीन पर शोर करते हैं उनके बीच में विनोद दुआ अपने संयत अंदाज शालीन मगर चुभते सवालों के साथ हमेशा याद आते रहेंगे।


उनका जाना, हिंदी पत्रकारिता की बड़ी क्षति. . . . .


विनोद दुआ का जाना टीवी पत्रकारिता के एक युग का अंत है। उन्ही की वजह से टीवी पर हिंदी पत्रकारिता पहली बार जगमगाई थी‌। उस समय जब टीवी की दुनिया दूरदर्शन तक सिमटी थी और टीवी पत्रकारिता नाम के लिए भी नहीं थी, विनोद दुआ धूमकेतु की तरह उभरे थे। इसके बाद वे लगभग साढ़े तीन दशकों तक किसी लाइट टॉवर की तरह मीडिया जगत के बीच जगमगाते रहे।दूरदर्शन पर उनकी शुरुआत गैर समाचार कार्यक्रमों की ऐंकरिंग से हुई थी, मगर बाद में वे समाचार आधारित कार्यक्रमों की दुनिया में दाखिल हुए और छा गए। चुनाव परिणामों

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के जीवंत विश्लेषण ने उनकी शोहरत को आसमान तक पहुँचा दिया था। प्रणय रॉय के साथ उनकी जोड़ी ने पूरे भारत को सम्मोहित कर लिया था।दरअसल, विनोद दुआ का अपना विशिष्ट अंदाज़ था। इसमें उनका बेलागपन और दुस्साहस शामिल था। जनवाणी कार्यक्रम में वे मंत्रियों से जिस तरह से सवाल पूछते या टिप्पणियाँ करते थे, उसकी कल्पना करना उस जमाने में एक असंभव सी बात थी।
मंत्री के मुंह पर आलोचना करने का साहस था…..
सरकार नियंत्रित दूरदर्शन में कोई ऐंकर किसी शक्तिशाली मंत्री को ये कहे कि उनके कामकाज के आधार पर वे दस में से केवल तीन अंक देते हैं तो ये उसके लिए बहुत ही शर्मनाक बात थी। मगर विनोद दुआ में ऐसा करने/कहने का साहस था। उन्होने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि सत्ता उनके साथ क्या करेगी। सत्तारूढ़ दल ने उनको राजद्रोह के मामले में फँसाने की कोशिश की, मगर उन्होने लड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट से जीत भी हासिल की, उनका मुकदमा मीडिया के लिए भी एक राहत साबित हुआ। हिंदी और अँग्रेजी दोनों भाषाओं पर दुआ साहब की पकड़ अद्भुत थी। अपवाद को छोड़ दें तो वे हिंदी के कार्यक्रम करते रहे और अपनी पहचान को हिंदी के ऐंकर के रूप में कायम रखा। वे घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए शुरुआती दौर के अलावा (न्यूज़ लाइन) कभी फील्ड में नहीं उतरे (खाने-पीने के कार्यक्रम ज़ायका इंडिया को छोड़कर) और न ही पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ट या लेख आदि लिखते थे, मगर वे देश-दुनिया की हलचलों के प्रति बहुत सजग रहते थे, ये उनकी पत्रकारीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
विनोद दुआ टीवी पत्रकारिता की पहली पीढ़ी के ऐंकर थे। उन्होने उस दौर में ऐंकरिंग शुरू की थी, जब लाइव कवरेज न के बराबर होता था। युवा मंच (1974) और आपके लिए (1981) जैसे कार्यक्रम रिकॉर्डेड होते थे। बहुत बाद में, 1985 में समाचार आधारित चुनाव विश्लेषण लाइव प्रसारण शुरू हुआ और उन्होने इसमें अपनी महारत साबित कर दी। बाद में जब न्यूज़ चैनलों का दौर आया, जिसमें सब लाइव ही लाइव था‌ उन्हे इससे तारतम्य बैठाने में किसी तरह की दिक्कत नहीं आई और जब डिजिटल पत्रकारिता का दौर आया तो वे बड़ी आसानी से वहाँ भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने में कामयाब रहे। द वायर और एचडब्ल्यू पर उनके शो के दर्शकों की संख्या लाखों में थी।


गाने, खाने, पढ़ने के शौकीन थे विनोद दुआ. . . . .


विनोद दुआ लगातार पढ़ते रहने वाले संप्रेषक थे। हिंदी-उर्दू के साहित्य उन्होने काफी पढ़ रखा था, मगर नए के प्रति उनकी जिज्ञासा बनी रहती थी. साहित्य इतर विषयों पर भी उनका अध्ययन चलता रहता था, किताबें उनकी अभिन्न मित्र थीं। इसीलिए उनकी महफिल में उदासी के लिए कोई जगह नहीं होती थी, उनके पास ढेर सारे प्रसंग और लतीफ़े होते थे। अकसर उनके घर पर शाम को महफिलें होती थीं और उनमें गाना-बजाना भी, वे खुद भी गाते थे और उनकी पत्नी डॉ. चिन्ना (पद्मावती) भी। बताते चलें कि उनकी पत्नी डाॅ. चिन्ना का इसी वर्ष 12 जून को निधन हो गया। विनोद दुआ जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति थे। उनका परिवार विभाजन के वक़्त पाकिस्तान के डेरा इस्माइल खान से आया था। (5 दिसंबर 2021)
विशेष संवाददाता विजय आनंद वर्मा की रिपोर्ट, , ,

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