बाल कहानी : आलस्य का परिणाम

बाल कहानी : आलस्य का परिणाम:-राजकुमार जैन ‘राजन

बिजली चमक रही थी। बादल गरज रहे थे और वर्षा जोरों से हो रही थी। लगातार बारिश की वजह से जंगल में पानी भर गया था। सभी जानवर अपने बच्चों के साथ अपनी-अपनी जगह छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर जा चुके थे।

हवेली के बगीचे में एक तालाब था। तालाब के उस पार एक पहाड़ी थी, जिस पर बहुत सी झाड़ियां और जंगली फूलों के पेड़ लगे हुए थे। बगीचे में आम के पेड़ों का एक बहुत बड़ा झुण्ड भी था। उस झुण्ड के बीचों-बीच चीकू और मीकू नाम के दो खरगोश रहते थे। चीकू बड़ा था और मीकू छोटा। जब तालाब का पानी उमड़-उमड़ कर सारे बगीचे में फैल गया तो मीकू ने घबराकर अपने भाई चीकू से कहा- ‘भैया, चलो, अब हम भी सामने वाली पहाड़ी पर जाकर छिप जाएं।’ ‘वह क्यों?’ चीकू ने सवाल किया।

‘पानी तेजी से बढ़ रहा है, कुछ ही देर में हमारे बिलों में पानी भर जाएगा। हम जब पानी में डूब जाएंगे तब हमें कोई भी जानवर आराम से अपना भोजन बना सकता है।’ मीकू बोला। ‘ऊं… हूं… मैं नहीं जाता। इतनी ऊंची पहाड़ी पर कौन चढ़े? मैं तो थक जाऊंगा।’ ‘और अगर खतरा सामने आ गया तो?’

मीकू ने पूछा। ‘तो क्या हुआ? मैं सामने वाले पेड़ की खोह में नहीं छिप सकता क्या?’ ‘उस खोह में कोई भी जानवर आसानी से तुम्हें अपनी चपेट में ले सकता है। पर उधर कांटेदार झाड़ी में घुस जाने पर हमें कोई नहीं देख सकेगा। जब पानी उतर जाएगा तब हम लौट आएंगे।’ मीकू ने कहा। ‘ना बाबा, मुझे तो नींद आ रही है। मैं तो अब सोने चला।’

‘प्रकृति ने हमें इतनी फुर्ती दी है कि अगर हम इसका इस्तेमाल करें तो जरा-सी देर में हम ऊंची से ऊंची पहाड़ी पार कर सकते हैं। इसी मनहूस नींद की वजह से हमारे पूर्वजों ने कछुए जैसे सुस्त जीव से भी मात खाई थी। इसी नींद की वजह से कुत्तों ने भी कितना फायदा उठाया है? इस बेतुकी नींद ने कितना नुकसान पहुंचाया है हमें। क्या इस बात का जरा भी अहसास नहीं है तुम्हें? हमारी कौम ने आज तक अपनी हालत बदलने की कोशिश ही नहीं की।’ मीकू ने उसे समझाते हुए कहा।

‘अब चुप भी रहो मीकू, भाषण मत दो। मैं तुम से बड़ा हूं, तुम से ज्यादा नफे-नुकसान की बात सोच सकता हूं। तुम्हें तो हमेशा वहम् घेरे रहता है। तुम एकदम बुजदिल हो। तुम्हें जाना ही है तो चले जाओ। मैं तो यही सोऊंगा।

मीकू ने एक बार और चीकू को समझाने की कोशिश की, मगर वह नहीं माना। आखिर मीकू अकेले ही पहाड़ी पर चढ़कर झाड़ियों में छिप गया। बारिश कुछ और तेज हो गई थी। मीकू भाई चीकू के लिए परेशान था। उसका मन कर रहा था कि एक बार फिर चीकू को समझा कर उसे अपने साथ ले आए। लेकिन बारिश ने तमाम रास्ते बंद कर दिए थे।

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चीकू आराम से अपने बिल में सोया हुआ था। वह अपने भाई के मुकाबले बहुत सुस्त था। मीकू ही उसके लिए घास तोड़कर लाता था। वह खाता और सोया रहता। उनके माता-पिता को कोई शिकारी पकड़कर ले गया था। इसलिए वे दोनों अकेले रहते थे। आधी रात बीती होगी तभी चीकू को लगा कि उसका बदन भीग रहा है। जब उसकी आंख खुली तो उसने स्वयं को गले तक पानी में डूबा पाया। पूरे बिल में पानी भर चुका था। बाहर जाने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे। बड़ी मुश्किल से गिरता-पड़ता वह बिल से बाहर निकला। वह सर्दी से कांप रहा था। उसमें हिलने-डुलने की ताकत भी नहीं रह गई थी।

कुछ ही देर में उसे लगा कि खोह में कोई और भी है। सांसों की आवाज वह साफ सुन रहा था। उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। पलट कर देखने पर मालूम हुआ कि दो जलती हुई आंखें उसे घूर रही हैं। वह न आगे बढ़ सकता था, न पीछे हट सकता था। पीछे मूसलाधार बारिश थी, तो आगे घूरती हुई आंखें।

इधर सारी रात मीकू बेचैन रहा। बार-बार उसका मन कर रहा था कि वह चीकू के पास जाए और किसी न किसी तरह उसे मना कर साथ आए। बिल में पानी भर चुका होगा। रास्ते में इतना पानी था कि खरगोश तो क्या बकरी भी डूब जाती।

‘चीकू अगर उससे छोटा होता तो वह अपने दांतों से उसके कान पकड़ कर खींच लाता।’ अफसोस कि मीकू छोटा था और चीकू उस पर बड़प्पन का रौब जमाए रहता था। ‘काश, उसने मेरी बात मान ली होती तो मुसीबत में क्यों पड़ता।’ वह सोचता रहा।

भोर का उजाला फैलने लगा था। जैसे ही बूंदें हलकी हुईं, मीकू टीले से कूद पड़ा और गिरता-पड़ता अपने बिल की तरफ दौड़ा। बिल में पानी ही पानी था। चीकू का कहीं पता नहीं था। वह दौड़-दौड़ कर उसे ढूंढ़ने लगा। जहां कहीं सफेदी झलकती, वह दौड़कर वहीं पहुंच जाता कि शायद वहां चीकू हो।

आखिर चीकू उसे दिखाई दे ही गया। लेकिन इस हाल में कि उसकी गर्दन टूटी हुई है, जिस्म नुचा हुआ है और आंखें बाहर हैं। ‘भैया!’ चीकू की इस हालत पर मीकू चीख उठा। परंतु अब क्या हो सकता था। आखिर चीकू को उसकी सुस्ती का परिणाम भुगतना पड़ा था। अवसर पाकर बिल्ली ने उसे धर दबोचा था।

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