बांध क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर तमिलनाडु सरकार ने केरल का आदेश जारी किया

बांध क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर तमिलनाडु सरकार ने केरल का आदेश जारी किया

चेन्नई, 09 नवंबर। मुल्लापेरियार बांध क्षेत्र में पेड़ों को काटने की अनुमति देने के आदेश पर केरल में राजनीतिक घमासान शुरू होने के बीच तमिलनाडु सरकार ने मंगलवार को पड़ोसी राज्य के आदेश की एक प्रति जारी की जिसमें कहा गया है कि एक आधिकारिक सिफारिश के बाद और दोनों राज्यों के बीच संधि के एक खंड के अनुसार पेड़ों को काटने की मंजूरी दी गयी।

यह भी सामने आया कि तमिलनाडु ने 23 पेड़ों को काटे जाने की अनुमति मांगी थी जबकि 15 पेड़ों को काटने की ही अनुमति दी गयी और उसे भी बाद में रोक दिया गया। यह आदेश दिखाता है कि केरल के शीर्ष प्राधिकारियों को तमिलनाडु को पेड़ों को काटे जाने की अनुमति देने के फैसले की जानकारी थी।

तमिलनाडु सरकार ने केरल के मुख्य वन्यजीव वार्डन और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) के पत्र की प्रति जारी की, जिसमें तमिलनाडु को 15 पेड़ों को गिराए जाने की अनुमति देने का आदेश दिया गया।

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इस आदेश की एक प्रति केरल के अतिरिक्त मुख्य सचिव, जल संसाधन विभाग और प्रधान सचिव, वन एवं वन्यजीव विभाग को दी गयी। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) बेन्निचन थॉमस के आदेश के बाद उप निदेशक (प्रोजेक्ट टाइगर) पेरियार पूर्व मंडल ए पी सुनील बाबू ने छह नवंबर को तमिलनाडु के अधिकारी जे सैम इर्विन को सूचित किया कि 15 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गयी है।

गौरतलब है कि तमिलनाडु को 15 पेड़ों को काटने की अनुमति देने वाले वाम सरकार के आदेश को लेकर सोमवार को केरल विधानसभा में हंगामा हुआ। विपक्षी गठबंधन यूडीएफ ने इस मामले की न्यायिक जांच कराने की मांग की और सदन से बहिर्गमन कर दिया।

केरल सरकार ने सात नवंबर को तमिलनाडु को 15 पेड़ों को काटने की अनुमति देने के आदेश पर रोक लगा दी और इस आदेश को जारी करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला किया। इससे एक दिन पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने केरल के अपने समकक्ष पिनरायी विजयन का पेड़ों को काटने की अनुमति देने के लिए आभार जताया था।

तमिलनाडु में विपक्ष मुल्लापेरियार मुद्दे को लेकर सत्तारूढ़ द्रमुक पर निशाना साध रहा है। केरल में मुल्लापेरियार बांध का निर्माण पेरियार नदी पर किया गया है। त्रावणकोर और ब्रिटिश शासन के बीच 1886 में हुए एक समझौते के बाद इस बांध का निर्माण किया गया।

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