न्यायालय की यौन कर्मियों को सूखा राशन देने संबंधी स्थिति रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर फटकार

न्यायालय की यौन कर्मियों को सूखा राशन देने संबंधी स्थिति रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर पश्चिम बंगाल को फटकार

नई दिल्ली, 10 जनवरी। उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में यौन कर्मियों को सूखा राशन मुहैया कराए जाने संबंधी स्थिति रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर राज्य सरकार को सोमवार को फटकार लगाई और कहा कि हर नागरिक को मौलिक अधिकार दिए गए हैं, भले ही उसका पेशा कोई भी हो।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा कि कोरोना वायरस के मामलों में तेजी से हो रही बढ़ोतरी के मद्देनजर इस मुद्दे पर बहुत ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि यह अस्तित्व का मामला है, लेकिन राज्य सरकार इसे हल्के में ले रही है।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें आपको कितनी बार बताना होगा? हम आपके खिलाफ सख्ती करेंगे। क्या आपने पिछली तारीख पर पारित आदेश देखा है? आप हलफनामा दाखिल क्यों नहीं कर सकते? जब अन्य सभी राज्य दाखिल कर रहे हैं, तो पश्चिम बंगाल को क्या दिक्कत है?’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम कड़ा रुख नहीं अपना रहे हैं, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि आप हमें हल्के में ले सकते हैं। हम आपसे मामले को गंभीरता से लेने के लिए केवल कह सकते हैं। हम इस मामले पर गौर कर रहे हैं, क्योंकि राशन मुहैया नहीं कराया जा रहा और यह अस्तित्व का मामला है। आप इसे हल्के में नहीं ले सकते।’’

लिंक पर क्लिक कर पढ़िए ”दीदार ए हिन्द” की रिपोर्ट

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राज्य सरकार के वकील ने पीठ के समक्ष अभिवेदन दिया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने ‘खाद्य साथी योजना’ शुरू की है और वह जरूरतमंदों को सूखा राशन मुहैया करा रही है। पीठ इस बात से प्रभावित नहीं हुई और उसने राज्य सरकार से इस संबंध में उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी के साथ दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

इससे पहले, न्यायालय ने कहा था कि प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार दिए गए हैं, चाहे उसका पेशा कुछ भी हो। इसके साथ ही न्यायालय ने केंद्र, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यौन कर्मियों के लिए मतदाता पहचान पत्र, आधार और राशन कार्ड करने की प्रक्रिया फौरन शुरू करने तथा उन्हें राशन मुहैया करना जारी रखने का निर्देश दिया था।

शीर्ष अदालत ने कोविड-19 महामारी के चलते यौन कर्मियों के समक्ष आ रही समस्याओं को उठाने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया था।

न्यायालय यौन कर्मियों के कल्याण के लिए आदेश जारी करता रहा है और उसने पिछले साल 29 सितंबर को केंद्र तथा अन्य को निर्देश दिया था कि यौन कमियों से पहचान सबूत मांगे बगैर उन्हें राशन मुहैया कराया जाए।

पीठ ने निर्देश दिया था कि प्राधिकार नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (नैको) और राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी की भी सहायता ले सकता है, जो समुदाय आधारित संगठनों द्वारा मुहैया की गई सूचना का सत्यापन कर यौन कर्मियों की सूची तैयार कर सकते हैं।

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