दयार ए हिज्र में तक्सीम हम भी हो गए…
दयार ए हिज्र में तक्सीम हम भी हो गए…
वादों के बोझ को उठाते है रोकर
झूठ के पुलन्दे को सर पर बिठाते है।
दयार ए गैर में मेहमां बने बैठे है वो
मगर अफसोस गफलत में दयार ए गम बनाते है?
हमें तो खौफ है उनके अहद की रोशनाई से
बनाकर घर फिर वो मकबरे की छत बनाते है
चलो उनके दयार ए गर्ब में देखें जरा
वो क्या छुपाते है? हमें और क्या बताते है।
दयार ए हिज्र में तक्सीम हम भी हो गए।
दयार ए हिन्द में अब हम फकत कुछ गीत गाते है।
दयार ए इश्क में दाखिल हुए थे सरफरोशी से
दयार ए गम में हम अब सभी से मुहं छुपाते हैं।
दयार ए हक में झूठे लोग बैठे थे।
दयार ए उम्र में अब खुद को हम कमजर्फ पाते है।
बुनियाद के पत्थर को मारते है ठोकर
ऊंची इमारत के आगे सर झुकाते है।
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किसान एकता संघ की एनपीसीएल के महाप्रबंधक से वार्ता