चुनाव का बिगुल
चुनाव का बिगुल
पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव का एलान कर दिया गया है। चुनाव आयोग ने शनिवार को चुनाव की तारीखों का एलान किया। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा सात चरणों में मतदान होंगे। नतीजे 10 मार्च को आएंगे। पहले चरण की वोटिंग 10 फरवरी को होगी। दूसरे फेज में 14 फरवरी, तीसरे फेज में 20 फरवरी, चौथे फेज में 23 फरवरी, पांचवें फेज में 27 फरवरी, छठे फेज में तीन मार्च और सातवें फेज में सात मार्च को वोटिंग होगी। बार-बार मुख्यमंत्री बदले जाने से चर्चा में आए उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव एक चरण में 14 फरवरी को होगा। इसके लिए 21 जनवरी को नोटिफिकेशन जारी कर दिया जाएगा। उत्तराखंड के साथ ही पंजाब में भी एक ही चरण में चुनाव होगा। यहां भी 14 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। गोवा की सभी 40 सीटों पर 14 फरवरी को मतदान होगा। इसके लिए 21 जनवरी को अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। मणिपुर
की 60 सीटों पर दो चरणों में मतदान होंगे। पहले चरण में 38 सीटों पर 27 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। दूसरे चरण में 22 सीटों पर 3 मार्च को वोटिंग होगी। पांचों राज्यों में सबसे ज्यादा नजर यूपी पर रहेगी। उत्तर प्रदेश में 10 फरवरी से सियासी समर की शुरुआत होगी। कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच पिछले दो महीने के दौरान यहां काफी रैलियां हुईं। नेताओं ने जमकर वादे किए। मगर महंगाई, बेरोजगारी पर कोई भी सटीक भरोसा नहीं दे पाया। साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए सेमीफाइनल माने जा रहे उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए बिगुल बज चुका है। अयोध्या में राममंदिर निर्माण, किसान आंदोलन और कोरोना महामारी से मचे हाहाकार की
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पृष्ठभूमि में होने जा रहे इस चुनावी महासमर में प्रादेशिक और स्थानीय मसलों पर मतदाताओं ने कितनी तवज्जो दी, नतीजों से पता चलेगा। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दिग्गजों के नेतृत्व की यह कठिन परीक्षा है। बड़े दलों के अलग-अलग खम ठोकने के कारण उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुकोणीय मुकाबला होना तय है। हालांकि, मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ भाजपा और सपा के बीच माना जा रहा है। कांग्रेस और आप उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हाथ पांव मार रही है तो बसपा आक्रामक तेवरों से दूर है। ऐसे में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह अबूझ पहेली बना हुआ है। राममंदिर, किसान आंदोलन, कोरोना महामारी के प्रबंधन जैसे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों के
महाभारत में प्रधानमंत्री मोदी, सीएम योगी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत दिग्गज नेताओं के नेतृत्व की परीक्षा भी होगी। नतीजे न सिर्फ सूबे की बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की भी दशा और दिशा तय करेंगे। इस चुनाव से लोकसभा के बीते दो और विधानसभा के एक चुनाव में बुरा प्रदर्शन करने वाली सपा और बसपा का भविष्य तय होगा। आप, कांग्रेस भी कसौटी पर हैं। सत्ता बनाए रखने के लिए भाजपा हिंदुत्व के साथ सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे है। पार्टी की कोशिश अगड़ों, गैर यादव पिछड़ों और गैर जाटव दलितों को जोड़े रखने की है। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि खासतौर से अति पिछड़ी जातियां और गैर जाटव दलित मुफ्त अनाज कार्यक्रम के साथ कम से कम तीन अहम केंद्रीय योजनाओं का लाभ मिलने के कारण इस चुनाव में भी उसका साथ देगी। इस बार भी उसे अगड़ों का साथ मिलेगा। इस चुनाव में सुभासपा उसके साथ नहीं है, मगर पार्टी ने निषाद पार्टी से गठबंधन कर इसकी भरपाई करने की कोशिश की है।
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