कैट की सभी पीठ समान, प्रधान पीठ को अतिरिक्त सुविधा की अनुमति नहीं दी जा सकती: अदालत

कैट की सभी पीठ समान, प्रधान पीठ को अतिरिक्त सुविधा की अनुमति नहीं दी जा सकती: अदालत

नैनीताल (उत्तराखंड), 31 अक्टूबर। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कहा है कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की सभी पीठ समान हैं और इसकी प्रधान पीठ को अतिरिक्त सुविधा की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

न्यायाधिकरण केंद्र सरकार के कर्मचारियों के सेवा मामलों को देखता है। उच्च न्यायालय ने उस याचिका को दिल्ली स्थानांतरित करने से संबंधित कैट की प्रधान पीठ के आदेश को भी खारिज कर दिया जिसकी सुनवायी उसकी नैनीताल पीठ में हो रही है। अदालत ने कहा कि ”प्रधान पीठ को शक्ति हथियाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”

भारतीय वन सेवा के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि किसी मामले को एक पीठ से दूसरी पीठ या एक अदालत से दूसरी अदालत में स्थानांतरित करने से पहले इसके लिए कुछ मानदंडों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

हल्द्वानी में तैनात चतुर्वेदी ने पिछले साल फरवरी में यहां न्यायाधिकरण की पीठ में एक अर्जी देकर सिविल सेवकों को पैनल में शामिल करने की प्रक्रिया को चुनौती दी थी।

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केंद्र ने अक्टूबर 2020 में नैनीताल सर्किट पीठ से मामले को नई दिल्ली में न्यायाधिकरण की प्रधान पीठ को स्थानांतरित करने का अनुरोध करते हुए दलील दी थी, ”चूंकि केंद्र सरकार के नीतिगत फैसले के संबंध में निर्णय का देशव्यापी असर होगा, इसलिए नीतिगत निर्णय की वैधता का फैसला करने के लिए सिर्फ प्रधान पीठ ही उपयुक्त पीठ है।” कैट की प्रधान पीठ ने चार दिसंबर, 2020 के अपने आदेश के जरिए मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने के लिए केंद्र की याचिका को मंजूरी दी थी।

चतुर्वेदी ने न्यायाधिकरण के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति एन एस धनिक द्वारा 23 अक्टूबर को जारी आदेश के अनुसार अदालत की राय है कि कैट का आदेश ”कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं” है। अदालत ने चतुर्वेदी की याचिका स्वीकार करते हुए कैट के आदेश को रद्द कर दिया।

उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नीतिगत फैसले को चुनौती कैट की किसी भी पीठ के समक्ष समान रूप से दी जा सकती है। उच्च न्यायालय ने कहा कि चतुर्वेदी का मामला ”प्रत्यक्ष तौर पर इस आधार पर स्थानांतरित किया गया था कि इस प्रकृति वाले मामले का केंद्र सरकार के कामकाज पर प्रभाव पड़ेगा।

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